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________________ ( २५ ) कल्याण के करने वाला है। ऊपर कहे अनुसार अ. सि पा उ. सा. यह पांचों बीजाक्षर हैं और इन पांचों का ॐकार बनता है । जो इनका नित्य ध्यान करते हैं उनका कल्याण होगा । कहा है किॐकार बिन्दु संयुक्त, नित्यं ध्यायन्ति योगिन । कामदं मोक्षरं चैव, ॐकाराय नमोनमः ।। इसकी महिया अगाध है इसका वर्णन करने के लिये मैं समर्थ नहीं हूं। जिज्ञासुओं को चाहिये कि ज्ञानियों की सेवा कर प्राप्त करे। ह्रींकार का ध्यान --*-- ध्यायेत्सिताब्जं वक्रवान्तरष्ट वर्गीदलाष्ट को। ॐ नमो अरिहन्तारणमिति वानपि क्रमात् ॥१॥ मुख के अन्दर पाठ कमल वाला श्वेत कमल को चिन्तवन करे और उसके आठों कमल में अनुक्रम से "ॐनमो अरिहंतारणं" इन आठ अक्षरों को स्थापन करे। इनमें केसरा पंक्ति को स्वरमय बनावे और करिणका को अमृत बिन्दु से विभूषित करे। उन कणिकाओं में से चन्द्र बिम्ब से गिरते हुए मुख से सञ्चारते हुए प्रभामण्डल के मध्य में विराजित चन्द्र जैसी कान्ति वाले मायाबीज "ह्रीं" का चिन्तवन करे । चिन्तवन करने के बाद पत्रों में भ्रमण करते आकाशतल से सञ्चारित मन की मलीनता का नाश करते हुवे । अमृत-रस से झरते और तालूरन्ध्र से निकलते हुए भ्रकुटी Scanned by CamScanner
SR No.034079
Book TitleNamaskar Mantrodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaychandravijay
PublisherSaujanya Seva Sangh
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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