SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टमंगल माहात्म्य घोषणा जो तो उचित अवसर पर सकल श्रीसंघके मंगल हेतु परम श्रेष्ठ शाश्वतसिद्ध मंगल स्वरुप अष्टमंगल के माहात्म्यदर्शक निम्नोक्त पाठ का सकल श्री संघको श्रवण करवाया जा सकता है एवं उसके पूर्व इस प्रकार से भूमिका करनी । * जैनागम ग्रंथो के आधार पर स्वस्तिक आदि अष्टमंगल शाश्वत है । जैनागमो में अनेकत्र उसके उल्लेख प्राप्त होते है । देवलोक में सभाओं के द्वार पर, विमानों के तोरणो पर एवं शाश्वत जिनालयों के द्वार पर भी अष्टमंगल होते है । चक्रवर्ती चक्ररत्न की पूजा अंतर्गत उसके आगे अष्टमंगल आलेखन करते है । श्री मेधकुमार एवं जमाली की दीक्षा के वरघोडे में भी आगे अष्टमंगल होते है। अन्यत्र भी कई स्थान पर अष्टमंगल होने के उल्लेख प्राप्त होते है। * जैनागमो में ये अष्टमंगलो की१७-१७ विशिष्टताएँ बताई गई है। * प्रभु महावीर, श्री रायपसेणइय सूत्र में श्री गौतम स्वामी समक्ष आमलकल्पा नामक नगरी का वर्णन कर रहे है । इस नगरी के इशान कौने में विविध प्रकार के वृक्षो से घिरा हुआ एक विशिष्ट स्वरुपवाला अशोकवृक्ष है । जिसके उपर अनेक संख्या में परम श्रेष्ठ द्रव्यमंगल स्वरुप अष्टमंगल होने को कहा है । अत्यंत विशिष्ट शोभा संपन्न ये अष्टमंगल का पाठ श्रीसंघ के मंगल हेतु यहाँ श्रवण करवाया जाता है। * सकल श्रीसंघ सावधान ! * ३ नवकार टीप्पणी : आठों मंगल के क्रमसर दर्शन कराने के बाद, आठों मंगल के दर्शन करवाने के लाभार्थी एकसाथ आठ मंगल लेके खडे रहे और उस वक्त सकल श्रीसंघ समक्ष अष्टमंगल माहात्म्य घोषणा कर सकते है।
SR No.034074
Book TitleAshtmangal Geet Gunjan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyaratnavijay
PublisherShilpvidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy