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________________ 1 भाषाभास्कर दूसरे और चौथे को महाप्राण कहते हैं । जैसे कवर्ग में क ग अल्पप्राणा और ख च महाप्राण हैं । इसी प्रकार से चवर्ग आदि में भी जाने! | जैसे श्रल्पप्राण । महाप्राण | क ग ख घ च न छ भ ट ड ठ ढ त द थ ध प ब फ भ २३ रकार और ऊष्म को छोड़कर शेष अक्षरों के भी दो और भेद हैं सानुनासिक और निरनुनासिक | चिनका उच्चारण मुख और नासिका से होता है उन्हें सानुनासिक कहते हैं और जो केवल मुख से बोले जाते हैं वे निरनुनासिक कहाते हैं ॥ २४ वर्णों के सिर पर ऐसा ँ चिन्ह देने से सानुनासिक होता है परंतु भाषा में प्राय: अनुस्वार ही लिखा जाता है और निरनुनासिक का कोई चिन्ह नहीं है । २५ प्रत्येक वर्ग के पांचवें व का सानुनासिक अल्पप्राण कहते हैं । जैसे ङ ज ण न म २६ जब व्यंजन के साथ मात्रा मिलायी जाती है तब व्यंजन का आकार माचासहित हो जाता है । जैसे क का कि की कु कू कृ कॄ क्लृ क्लृ के के को को इसी रीति ख आदि मिलाकर सब व्यंजनों में जाने। परंतु जब उ वा ऊ की मात्रा र के साथ मिलाई जाती है तब उसका रूप कुछ विकृत होता है । जैसे रु रू ॥ संयुक्त व्यंजन २० जब दो आदि व्यंजनों के मध्य में स्वर नहीं रहता तब उन्हें संयोग कहते हैं और वे एकही साथ लिखे जाते हैं । जैसे पत्थर . इस शब्द में त और थ का संयोग है ॥ त् २८ बहुधा संयुक्त अक्षरों की लिखावट में मिले हुए व्यंजनों का रूप दिखाई देता है परंतु च वज्ञ इन अक्षरों में जिनके संयोग से बने Scanned by CamScanner
SR No.034057
Book TitleBhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorEthrington Padri
PublisherEthrington Padri
Publication Year1882
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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