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________________ भाषाभास्कर (वा बनाने के लिये) बनिये से सीधा तालाते है हमसे मिलने को आते थे | व स्नान को गये हैं वे ३०२ येोग्यता उपयुक्तता औचित्य आदि के बताने में यह कारक श्राता है | जैसे यह तुमको योग्य नहीं है यह तुमको उचित नहीं है लड़कों को, चाहिये कि माता पिता की आज्ञा को मानें ॥ ३०३ कहीं २ आवश्यकता के प्रकाश करने में चतुर्थ कारक होता है । जैसे अब मुझको जाना है तुमको आना होगा उसको अब पाठ सीखना हे ॥ ३०४ नमस्कार स्वस्ति आदि शब्द के योग में चतुर्थ कारक होता है । जैसे राजा और प्रजा के लिये स्वस्ति हो आपको नमस्कार श्रीमच्चि दानन्दमूर्तये नमः । विशेष यह है कि प्रायः हिन्दी में भी नमः के साथ योग होने से संस्कृत का ही चतुर्थ्यन्त पद बोलते हैं। जैसे प्रायः पुस्तकों में श्रीपरमात्मने नमः इत्यादि लिखते हैं ॥ ८१ पञ्चम अर्थात अपादान कारक । ३०५ विभाग के स्थान का ज्ञान जिस से होता है उसे अपादान कहते हैं अपादान में पञ्चम कारक होता है । जैसे पर्वत से गिरा है घर से आया है नगर से गया है ॥ ३०६ भिन्नता परिचय अपेक्षा अर्थ का बोध हो तो अपादान कारक हेगा। जैसे यह उस से जुदा है यह इस से भिन्न है जिसको वेदान्तियों के सब सिद्धान्तों से अच्छा परिचय होगा वह ऐसी में न पड़ेगा दयानन्द स्वामी से मेरा परिचय हुआ है बुद्धिमान शत्रु बुद्धिहीन मित्र से उत्तम है धन से विद्या श्रेष्ठ है ॥. ३०० परे रहित आदि शब्द के संयोग में पञ्चम कारक होता है । जैसे मेरे घर से परे वाटिका है नदी से परे को भर पर मेरा मित्र रहता है हमारे माता पिता अब चलने फिरने से यह मनुष्य विद्या से रहित है ॥ रहित हो गये हैं निर्धारण अर्थ से अर्थात जब वस्तुओं के समूह में से एक Scanned by CamScanner ३०८ वस्तु वा व्यक्ति का निश्चय किया जाता है तो और अपादान देनों की विभक्तियां आती हैं । जैसे पर्वतों में से हिम लय अच्छा है कत्रियों में से कालिदास अच्छा है ॥ 11
SR No.034057
Book TitleBhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorEthrington Padri
PublisherEthrington Padri
Publication Year1882
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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