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________________ भाषाभास्कर २६२ १ प्रारम्भबोधक - मुख्य क्रिया के साधारण रूप के अंत्य आ को आदेश कर लिङ्ग वचन और पुरुष के अनुसार लगना क्रिया के मिलाने से आरम्भबोधक क्रिया हो जाती है । जैसे 998 बेने लगना सेने लगना होने लगना Scanned by CamScanner आने -लगना चलने लगना देने - लगना REB २ अवकाशबोधक मुख्य क्रिया के साधारण रूप के अंत्य श्र को ए आदेश करके देना वा पाना क्रिया के लगाने से लिङ्ग वचन के अनुसार अवकाशबोधक क्रिया बनती है । जैसे जाने देना और पुरुष बोलने देना सेाने देना छठवां अध्याय ॥ कृदन्त के विषय में । ou आने -पाना उठने पाना चलने- पाना २६४ ध्यान करना-भय-खाना चुप रहना सुध लेना इत्यादि भिन्न क्रिया हैं। बोलना चालना देखना-भालना चलना-फिरना कूदना - फांदन‍ समझना-बूझना इत्यादि एकार्थक ही दो क्रिया है इति क्रिया प्रकरण ॥ २६५ क्रिया से परे जा ऐडे प्रत्यय होते हैं कि जिन से कर्तृत्व आदि समझे जाते हैं तो उन्हें कृत कहते हैं और कृत के आने से जो शब्द बनते हैं उन्हें कृदन्त अथवा क्रियावाचक संज्ञा कहते हैं इस कारण कि प्राय: क्रिया के सदृश अर्थ को प्रकाश करते हैं ॥ २६६ हिन्दी में पांच प्रकार की संज्ञा क्रिया से बनती हैं अर्थात कर्मवाचक कर्मवाचक करणवाचक भाववाचक और क्रियाद्योतक । उनके बनाने की रीति नीचे लिखते हैं ॥ १ कर्तृवाचक | २६० कर्तृवाचक संज्ञा उसे कहते हैं जिस से कर्तापन का बोध होता है । उनके बनाने की रीति यह है कि क्रिया के साधारण रूप के अंत्य आ को ए आदेश करके उसके आगे हारा वा वाला लगा देते हैं । जैसे
SR No.034057
Book TitleBhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorEthrington Padri
PublisherEthrington Padri
Publication Year1882
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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