SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषाभास्कर 99 २ । ८ सम्बोधन उसे कहते हैं जिस से कोई किसी को चिताकर अथवा पुकारकर अपने सन्मख कराता है उसके चिन्ह हे हो अरे इत्यादि हैं। से हे महारान रामदयाल हो अरे लड़के सुन ॥ ११५ ऊपर की रीति से प्रत्येक संज्ञा की आठ अवस्था हो सकती है इन अवस्थाओं की सूचक प्रत्ययों को विभक्तियां कहते हैं ॥ की आदि की सूचक विभक्तियां । कारक। विभक्तियां। कारक। विभक्तियां। कता ० वा ने अपादान कर्म को सम्बन्ध का के की करण से अधिकरण में पै पर सम्प्रदान को सम्बोधन हे अरे हो ११६ विभक्तियां स्वयं तो निरर्थक हैं परंतु संज्ञा के अंत में जब आती हैं तो सार्थक हो जाती हैं और यद्यपि इन विभक्तियों में कुछ विकार नहीं होता तो भी संज्ञा के अंत में इनके लगाने से बहुधा विकार हुआ करता है। ११० इसका भी स्मरण करना चाहिये कि कता और सम्बोधन को छोड़ करके शेष कारकों के बहुवचन में शब्द और विभक्ति के मध्य में बहुवचन का चिन्ह ओं लगाया जाता है परंतु सम्बोधन के बहुवचन में निरनुनासिक ओ होता है ॥ अथ संज्ञा का रूपकरण । ११८ कह पाये हैं कि संज्ञा दो प्रकार की होती हे एक पल्लिङ्ग दूसरी स्त्रीलिङ्ग फिर प्रत्येक लिङ्ग की संज्ञा भी दो प्रकार की होती है एक तो वे जिनका उच्चारण हलन्तसा हुआ करता है दूसरी वे जिनका उच्चारण स्वरान्त होता है। ११६ संज्ञा की कारक रचना अनेक रीति से होती है इस कारण सुभीते के निमित्त जितनी संज्ञा समान रीति से अपने कारकों को रचती हे उन सभी को एक ही भाग में कर देते हैं। हिन्दी की सब संज्ञा चार भाग में आ सकती हैं। यथा Scanned by CamScanner
SR No.034057
Book TitleBhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorEthrington Padri
PublisherEthrington Padri
Publication Year1882
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy