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________________ E भाषाभास्कर ३८ अ आ क ख ग घ ङ ह और विसर्ग इनका उच्चारण कण्ठ से होता है इसलिये ये कण्ठा कहाते हैं ॥ ३६ इ ई च छ ज झ ञ य श तालु पर जीभ लगाने से ये सब वर्ण बोले जाते हैं इसलिये ये अक्षर तालव्य कहाते हैं ॥ ४० ऋ ॠ ट ठ ड ढ ण र ष ये मूद्धी अर्थात तालु से भी ऊपर जीभ लगाने से बाले नाते हैं इसलिये इनको मूर्द्धन्य कहते हैं ॥ ४१ चेत रखना चाहिये कि ड और ढ के दो २ उच्चारण होते है एक तो यह कि जब इन अक्षरों के नीचे बिंदु नहीं रहता तो जीभ का अग्र तालु पर लगाते हैं जैसे डरना डाकू ढाल ढाल इन शब्दों में । इन अक्षरों के नीचे बिन्दु होने से दूसरा उच्चारण समझा जाता है इसके बालने में जीभ का अग्र उलटा करके मूर्द्धा से लगाया जाता है । जैसे बड़ा थोड़ा पढ़ना चढ़ना इन शब्दों में ॥ यह भी चेत रखना चाहिये कि अनेक लोग घ का उच्चारण ख के समान कर देते हैं जैसे मनुष्य को मनुख्य भाषा का भाखा दोष को दोख बोलते हैं परंतु यह रीति अशुद्ध ਛੇ 11 त थ द ध न ल स ये ऊपर के दन्तों पर जीभ लगाने से उच्चरित होते हैं इसलिये इन अक्षरों को दन्त्य कहते हैं ॥ ४२ ४३ उ ऊ ए फ ब भ म ये आठों से बोले जाते हैं इसलिये इन्हें ओष्ठ्य कहते हैं ॥ ४४ ए ऐ इनके उच्चारण का स्थान कण्ठ और तालु है इसलिये ये कण्ठोष्ठा कहाते हैं॥ ४५ ओ ओ कण्ठ और आष्ट से बोले जाते हैं इसलिये ये कण्ठोष्ठ्य कहाते हैं ॥ ४६ व के उच्चारण स्थान दन्त और श्रेष्ठ हैं इसलिये इसे दन्त्योष्ठ्य कहते हैं ॥ ब और व ये दो वर्ग बहुधा परस्पर बदल जाते हैं । संस्कृत शब्दों में जहां व होता है वहां हिन्दी में ब लगाते हैं और कभी २ व की जगह में ब बोलते हैं पर संस्कृत में जैसा शब्द हे वैसा ही प्रायः हिन्दी में होना चाहिये ॥ ४० अनुस्वार का उच्चारण नासिका से होता है इसलिये सानुलामिक कहाता है Scanned by CamScanner 1
SR No.034057
Book TitleBhasha Bhaskar Arthat Hindi Bhasha ka Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorEthrington Padri
PublisherEthrington Padri
Publication Year1882
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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