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________________ [१] प्रज्ञा पंचाज्ञा का पालन करवाने वाला कौन है? मेरी अज्ञाशक्ति खत्म हो चुकी है, हम में बुद्धि खत्म हो चुकी है, बुद्धि हम में है ही नहीं। साइन्टिस्ट भी यह नहीं मानते कि हमारी बुद्धि खत्म हो गई है। कोई मानेगा ही नहीं न! बुद्धि कैसे खत्म हो सकती है? प्रश्नकर्ता : अज्ञा किसी में कम या ज्यादा हो सकती है? दादाश्री : अज्ञा तो कम-ज़्यादा हो सकती है सभी में। यह ज्ञान मिलने के बाद प्रज्ञा तो तुरंत ही काम करने लगती है। उसके बाद उसका' पुरुषार्थ किस तरफ है, पुरुषार्थ अर्थात् पाँच आज्ञा का पालन करना। पुरुष होने के बाद पुरुषार्थ नहीं करे तो उसकी खुद की ही भूल है न! ज्ञान मिलने के बाद पुरुष हो गया, ऐसा कहा जाएगा और पुरुष होने के बाद आज्ञा पालन करने से वह पुरुषोत्तम होता जाता है। जो पुरुषोत्तम हो जाए, वही परमात्मा है। रास्ता सुव्यवस्थित वाला हाईवे ही है न! प्रश्नकर्ता : आज्ञा का पालन कौन करता है, प्रतिष्ठित आत्मा ही पालन करता है न? दादाश्री : प्रतिष्ठित आत्मा के लिए आज्ञा पालन का प्रश्न ही कहाँ है इसमें? यह तो आपको जो आज्ञा का पालन करना है, वह आपका जो प्रज्ञा स्वभाव है, वही आपसे सबकुछ करवाता है। आत्मा की प्रज्ञा नामक शक्ति है, तो फिर और क्या रहा उसमें ? बीच में किसी की दखल है ही नहीं न! आज्ञा का पालन करना है। अज्ञाशक्ति जो नहीं करने दे रही थी, वह प्रज्ञाशक्ति करने देती है। आज्ञा पालन करने से आपको प्रतीति में रहता है कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ'। और वह लक्ष (जागृति) में है लेकिन अनुभव में कम है। उस रूप हुए नहीं हो अभी। उसके लिए, जब पाँच आज्ञा का पालन करोगे तब उस रूप हो पाओगे। अतः अन्य कुछ भी करना बाकी नहीं रहा। अतः आज्ञा ही धर्म और आज्ञा ही तप। जब तक तप है, तब तक प्रज्ञा है। तब तक मूल स्वरूप नहीं है। आत्मा में वह तप नामक गुण है ही नहीं, प्रज्ञा तप करवाती है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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