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________________ बावा 345 डिग्री तक पहुँच जाए तब भी मंगलदास में बदलाव नहीं दिखाई देता क्योंकि प्रकृति तो स्वाभाविक रूप से काम करती ही है। हाँ, बावा में बहुत बदलाव हो जाता है। बावा का खुद का इफेक्ट ज्ञान से भोग लिया जाता है इसलिए बावा 'मैं' में आता जाता है। 'मैं' बावा को रियालिटी समझाता है, उस आधार पर बावा 'मैं' में आता जाता है। प्रज्ञा के रूप में 'मैं' बावा को समझाता है। बावा आगे बढ़ता जाता है, वह प्रज्ञा की हाज़िरी के कारण है। जागृति डाउन हो जाए तो बावा नीचे जाने लगता है। बावा का असर मंगलदास पर नहीं पड़ता और मंगलदास का असर बावा पर नहीं पड़ता। बावा की लाख इच्छा हो कि मंगलदास में बदलाव हो जाए लेकिन वह नहीं हो सकता। मंगलदास की प्रकृति बनाने में बावा ही कारणभूत है। प्रकृति प्रकृति को नहीं बनाती। बावा ने पूर्वजन्म में प्रकृति बनाई है। उसमें से कुछ भाग प्रकृति में आ गया और बाकी का बावा के पास रह गया। जो चेन्ज नहीं होता, वह प्रकृति है और जो चेन्जेबल है, वह बावा है। क्या बावा का ज्ञान चेन्जेबल है? हाँ, ज्ञान हमेशा चेन्जेबल होता है। अज्ञान भी चेन्जेबल होता है। ___मंगलदास का जन्म हुआ तब सपोज़ (मान लो कि) 202 डिग्री तक का था। वह तो वही का वही रहता है आखिर तक लेकिन ज्ञान मिलने के बाद बावा अलग हो जाता है (303 डिग्री) इसलिए उसकी डिग्रियाँ, आज्ञा में रहने से, जागृति में रहने से 303 डिग्री से आगे बढ़ने लगती हैं तो आखिर में जब वह 360 डिग्री हो जाती है तब बावा का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहता। वह केवलज्ञान स्वरूप हो जाता है। बावा का जन्म ज्ञान मिलने के बाद होता है। तब तक 'मैं' और मंगलदास और बावा सभी कुछ एक ही रहता है। अतः श्रद्धा में 360 डिग्री है लेकिन वर्तन में 303 डिग्री है। श्रद्धा में 'मैं शुद्धात्मा हूँ' है लेकिन वर्तन में 303 डिग्री वाला बावा है। अतः 71
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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