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________________ मन में विचार आते हैं, उनमें यदि बावा तन्मयाकार हो जाए तो वह बन जाता है मंगलदास! और अगला जन्म खड़ा किया और मन साफ नहीं हुआ। अलग रहकर उसे देखते रहें तो उतना ही मुक्त होगा! वास्तव में आत्मा कभी भी मन में, बुद्धि में, चित्त में या अहंकार में तन्मयाकार होता ही नहीं है। जो तन्मयाकार होता है, वह बावा है। ___ 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मानता है, उससे भावमन शुरू हो जाता है। 'मैं अकर्ता हूँ', यदि ऐसा हो जाए तो भावमन बंद। अर्थात् यह स्थूल मन मंगलदास में आता है और सूक्ष्म मन बावा में आता है। स्थूल मन को देखने वाला बावा है और बावा को देखने वाली प्रज्ञाशक्ति है। मंगलदास जो करता है, उसे बावा जानता है और जो इन सब को देखता और जानता है, वास्तव में वह आत्मा ही आत्म दृष्टि से देखता और जानता है। जब तक प्रज्ञा है तब तक बावा है। प्रज्ञा बावा को भी देखती और जानती है। बावा खुद को कर्ता मानता था इसलिए कर्मबंधन होता ही रहता था। अब ऐसी मान्यता नहीं रही कि 'मैं बावा हँ' और मानता है कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ' इसलिए अकर्ता हो गया, इसीलिए कर्म नहीं बंधते।। तीर्थंकर भी नामकर्म है, वह चेतन नहीं है। जो इस सर्कल (सांसारिक अवस्थाओं) से बाहर खड़ा है, वह चेतन है। 'सर्कल' में कहीं भी अगर मेरापन नहीं रहे तो वह प्योर चेतन है। पुद्गल की सभी अवस्थाओं को दादाश्री ने 'सर्कल' कहा है। दादाश्री कहते हैं कि यह आपसे जो बातें कर रहा है, वह बावा है, सुनने वाला भी बावा है। जब बावा को ऐसा पता चलता है कि हम सर्कल से बाहर आ गए हैं, तब ऐसा कहा जाता है कि समकित हो गया। मूल जानने वाला आत्मा है लेकिन बावा रोंग बिलीफ से मानता है कि 'मैं जान रहा हूँ'। 'मैं कर रहा हूँ और मैं जान रहा हूँ।' दोनों का मिक्स्च र है, वह बावा है और 'मैं जान रहा हूँ' 'मैं कर्ता नहीं हूँ' तो 65
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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