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________________ ४४४ आप्तवाणी - १३ (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : अर्थात् बावा तीन सौ छप्पन पर है । दादाश्री : बावा तीन सौ छप्पन डिग्री पर है । प्रश्नकर्ता : और आप तीन सौ साठ पर । दादाश्री : 'मैं' तीन सौ साठ पर और तीर्थंकरों में दोनों ही तीन सौ साठ । प्रश्नकर्ता : केवलियों में भी दोनों तीन सौ साठ । दादाश्री : केवलियों में दोनों तीन सौ साठ हों या न भी हों, लेकिन तीर्थंकरों में तो दोनों तीन सौ साठ । भेद, तीन सौ साठ और तीन सौ छप्पन डिग्री का प्रश्नकर्ता : तीर्थंकरों की तीन सौ साठ डिग्री और आपकी तीन सौ छप्पन डिग्री, वह भेद समझाइए | दादाश्री : तीन सौ साठ वाले ऐसा नहीं कहते कि 'चलो आपको मोक्ष दूँ'। और देखो! मैं तो खटपट करता हूँ न, 'चलो मोक्ष देता हूँ'। ओहोहो आए बड़े मोक्ष देने वाले ! जब संडास नहीं आती तब जुलाब लेना पड़ता है ! आए बड़े मोक्ष देने वाले ! यह तो ऐसा है न कि जो ऐसा कुछ भी नहीं कहते, वे वीतराग हैं और हम खटपटिया वीतराग हैं । यह जो खटपट करते हैं वह किसलिए? क्या पेट में दुःख रहा है कि खटपट कर रहे हो ? प्रश्नकर्ता: दूसरों के लिए । दादाश्री : मन में ऐसा भाव है कि 'जैसा सुख मैंने प्राप्त किया वैसा सभी प्राप्त करें'। अन्य कुछ भी नहीं चाहिए, दुनिया की कोई चीज़ नहीं चाहिए लेकिन यह भी भाव ही है न ! जब तक भाव है तब तक यह डिग्री कम है। जब तक कोई भी भाव है तब तक संपूर्ण वीतराग नहीं हैं। अतः हमारी चार डिग्री कम हैं। जबकि तीर्थंकर तो कुछ भी नहीं कहते। बिल्कुल उल्टा हो रहा हो और वे देखते हैं कि यह उल्टा
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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