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________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान 'मैं, बावा और मंगलदास' प्रश्नकर्ता : जो ऐसा कहता है कि मैं तीन सौ उनसठ डिग्री वाला ज्ञानी हूँ, क्या वह भी बावा है ? दादाश्री : वह बावा है । प्रश्नकर्ता : जो उसे जानता है, वही ? दादाश्री : वह मूल प्रश्नकर्ता : मूल, वह तो 'मैं' है। दादाश्री : मूल, वह 'मैं' है । जहाँ शब्द नहीं पहुँचते वहाँ पर 'मैं' है, फिर भी सब उसी में से उद्भव होता है । तुझे बावा दिखाई देता है न? बावा के खत्म होने के बाद वह मूल के साथ अभेद हो जाता है तब फिर यह बावा खत्म हो जाता है ! बावा और मैं, दोनों के बीच जो पर्दा है, जब वह पर्दा निकल जाएगा तब वह 'मैं' बन जाएगा। I प्रश्नकर्ता : वह कौन सा पर्दा है ? है ४३९ I दादाश्री : वही पर्दा है, सिर्फ मूल चोंट (चिपका हुआ है, मान्यता) है, दरअसल चोंट। वह चोंट निकल जाए तो खत्म हो जाएगा। उस पद को आने में देर ही नहीं लगेगी । प्रश्नकर्ता : कब आएगा दादा ? वह पद कब आएगा ? दादाश्री : 360 डिग्री पूरी हो जाने पर । 'मंगलदास' पर क्या असर ? प्रश्नकर्ता : यह बावा जब तीन सौ पैंतालीस डिग्री से आगे पहुँचता है तब मंगलदास में क्या परिवर्तन होता है ? दादाश्री : मंगलदास में कोई परिवर्तन नहीं होता । वह तो अपनी प्रकृति में ही रहता है । परिवर्तन होता रहता है इस बावा में ही । 'मैं' सिर्फ देखता रहता है। प्रश्नकर्ता : इस बावा में किस आधार पर परिवर्तन होता है ?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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