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________________ ४३२ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : तो इसका अर्थ ऐसा कहा जा सकता है कि चंदूभाई तीन सौ तीन डिग्री पर आते हैं या चंदूभाई दो सौ दो डिग्री पर ही है ? दादाश्री : मूलतः चंदूभाई किसी एक जगह पर, उसी जगह पर था। वहीं के वहीं पर! और फिर यह आ गया। यह चंदूभाई इतने-इतने खर्च करके आया है अतः यह मूल चंदूभाई नहीं है। यह खर्च किया हुआ चंदूभाई (बावा) है। प्रश्नकर्ता : इसका क्या मतलब है दादा? खर्च किए हुए चंदूभाई का मतलब क्या है? ___ दादाश्री : वह बात आपके ब्रेन तक पहुँचेगी नहीं इसलिए मैंने जो आपको यह लिखवा दिया, यही भूल कर दी। यदि वह समझ में आ जाए तो फिर यह बात तो बहुत सुंदर है। अतः आपको ऐसा ही कहना है कि 'मैं' यह तीन सौ तीन डिग्री नहीं हूँ, 'मैं' तो वह था। प्रश्नकर्ता : अर्थात् जिसे समझ में आ गया कि 'मैं यह चंदूभाई नहीं हूँ' और 'मैं यह शुद्धात्मा ही हूँ', ऐसा जिसे समझ में आ गया वह आगे तीन सौ तीन डिग्री तक पहुँच गया, दो सौ दो डिग्री पर से। दादाश्री : हाँ! हूँ लेकिन अभी तक बन नहीं गया हूँ। अब उसने वैसा बनने का प्रयत्न शुरू कर दिया है। क्या-क्या अड़चने हैं, वे अड़चने आपको बता दीं। उन अड़चनों को दूर करते जाओगे तो आगे बढ़ते जाओगे। प्रश्नकर्ता : अतः आपने जो उपमा दी है, मैं, बावा और मंगलदास, तो उसमें बावा 303 डिग्री तक आ गया है। दादाश्री : हाँ बावा 303 डिग्री तक आ गया है, वही बावा जब 359 का हो जाएगा तब तक बावा है और तीन सौ साठ हो जाएगा तो शुद्धात्मा! प्रश्नकर्ता : समझ में आ गया अब। अतः मंगलदास तो दो सौ दो डिग्री पर ही है। वह तो जो लेकर आया है, वैसा ही होता रहेगा।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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