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________________ ४२६ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) लेकिन समझ में आ जाए तभी काम का है न! जो ज्ञान किसी भी जन्म में नहीं मिला था, वह मिला है और इनका तो राह पर आ गया है उदाहरण और दलील के साथ कि 'मैं कौन हूँ?' 'बावा कौन है?' और 'मंगलदास कौन है?' बावा को देखा, मंगलदास को भी देखा। अब हम अपने खुद में आ गए हैं। किस उम्र में? ___यदि वह 'मैं' में आ जाएगा तो अक्रम विज्ञान का ध्येय पूरा हो जाएगा! आपको समझ में आया न ठीक से? अब हमें खुद में रहना है, 'मैं' में रहना है। बावा तो था ही। बहुत दिनों तक उसमें रहे। बदगोई हुई, शादी की, पछताए भी सही, कोई है जो नहीं पछताया? प्रश्नकर्ता : इसमें रिलेटिव में तो भरपूर डूबे हुए थे। दादाश्री : भरपूर यानी डूबे हुए थे और उसमें भी ऐसा था कि अगर डबल डुबाया जाए तो उसमें भी मज़ा आता था। यह तो अभी ही बदला है न? प्रश्नकर्ता : मार्ग मिला है इसलिए अब अंदर ऐसा विश्वास है कि निकल पाएंगे। दादाश्री : इस चीज़ का विश्वास हुआ! धन्यभाग हैं ! जो इस बात को समझ गया न, उसका तो कल्याण हो गया। अब, अगर बाहर कोई ज्ञानी हों न तो वे मन में ऐसा मानते हैं कि 'मैं ज्ञानी हूँ'। तो रात को भी वे उसी कैफ में सो जाते हैं। हर किसी को कैफ चढता है। वे रात को भी इसी नशे में सो जाते हैं। आखिरकार तो वास्तव में उसमें भी पछताते हैं। यह तो बावा है, बावा! इसमें तूने क्या कमाया? तू अलग है, तू तो शुद्धात्मा है। 'बावा' शुद्ध तो 'मैं' शुद्ध रियल के लिए आपको कुछ नहीं करना है। यह इतना जो है वह
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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