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________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास' ४२३ जब तक तीन सौ छप्पन है, तब तक मुझे कहना पड़ेगा न कि 'मैं जुदा हूँ'। आपसे नहीं कहता? अतः बावा ही है ! यह किसी को बताना नहीं है। फिर लोग कहेंगे, 'बावा क्यों?' बल्कि नासमझ लोग दोष बाँध लेते हैं। हमें अपने आपको इस तरह से समझ लेना है कि 'आखिर में तो मैं बावा हूँ!' प्रश्नकर्ता : अब जो बावा है वह बावा ही रहता है, बावी बनने नहीं जाता। यह बहुत अच्छा हो गया। बावा रहता है, बावी नहीं। अगर बावी होने जाएगा तो प्रज्ञा कहेगी, 'चल बावा बनकर रह' जो बावी है, वही स्त्री बनती है न! जो बावा है, अगर वह बावी बन जाए तो उससे स्त्रीपना आता है। अतः दादा, अब स्त्रियों को चाबी मिल गई, बहुत बड़ी, यहाँ पर मूल पॉइन्ट से ही पकड़ना है! दादाश्री : सभी स्त्रियाँ समझ गई, इस बावा को। यह (दादाश्री का) बावा आपके साथ बहुत सख्ती रखता है। बहुत सख्त, फिर भी जब वे आपको डाँटते हैं तब हम ऐसा सब कहते हैं, 'आप बूढ़े हैं, ऐसे हैं, ऐसा है-वैसा है'। वह हमें अलग दिखाई देता है, वह साफ-साफ दिखाई देता है, चेहरा-वेहरा सभी कुछ क्लियर... प्रश्नकर्ता : दादा, और सब कहिएगा लेकिन बूढ़ा मत कहिएगा। दादाश्री : ऐसा नहीं कहेंगे। प्रश्नकर्ता : मत कहिए। आप लगते ही नहीं हैं न। दादाश्री : वह तो मज़ाक कर रहा हूँ। प्रश्नकर्ता : नहीं! ऐसी मज़ाक मत कीजिए। दादाश्री : महात्माओं से मज़ाक कर रहा हूँ। महात्माओं को आश्चर्य होता है कि 'ये क्या कह रहे हैं!' लेकिन अब नहीं कहूँगा। प्रश्नकर्ता : महात्मा तो कहते हैं कि 'दादा तो अट्ठाइस साल के लगते हैं।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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