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________________ ४२० आप्तवाणी - १३ (उत्तरार्ध) पहुँचे परमात्मा के पोर्च में तो फिर वह मान्यता ठीक से फिट हो गई है न ? आप बावा से अलग, प्योर हो और हंड्रेड परसेन्ट प्योर स्वरूप ! भगवान ! अब आज्ञा में रहने से वे परसेन्ट बढ़ते जाएँगे धीरे-धीरे और अगर गर्वरस चखना बंद हो गया तो बढ़ेंगे। अगर गर्वरस चखते हैं तो मार्क्स नहीं बढ़ते । वहीं के वहीं रह जाता है, बल्कि मार खा जाता है क्योंकि न खाने की चीज़ खा ली। उल्टी करने की चीज़ थी उसे खा गए ! प्रश्नकर्ता: दादा, आपने वह कहा न कि यह जो बावा है, आप उससे अलग हैं, भगवान हंड्रेड परसेन्ट प्योर हैं और फिर यह मंगलदास तो है ही वहाँ पर। दादाश्री : मंगलदास तो थे । प्रश्नकर्ता : हाँ तो चार हुए ? दादाश्री : नहीं, चार नहीं, तीन ही हुए। तीसरा स्टेशन तो लंबा है इसीलिए फाटक ज़रा लंबा है। उसे चौथा स्टेशन, नया स्टेशन नहीं कहेंगे। एक स्टेशन होता है तो वह यहाँ से शुरू हुआ और सौ गज दूर या इतना बड़ा हो कि सौ मील दूर होता है लेकिन जहाँ से शुरुआत हुई वह स्टेशन ही कहलाएगा न ? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : जब वह फाटक आएगा तब बाहर निकल पाएँगे । भगवान फाटक के पास हैं । प्रश्नकर्ता : हाँ 1 दादाश्री : जैसे ही उस फाटक को छुआ तो वह भगवान बन जाएगा। तो इसे एक कहेंगे या दो कहेंगे ? एक ही । और वह तो मन में समझना है कि प्योर सोल का स्टेशन आ गया। प्योर सोल बन गया । अब वह ज़रा ज़्यादा लंबा है तो चाय पीते-पीते जाएँगे ।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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