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________________ ४१० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) का झंडा तो रखना ही पड़ेगा लेकिन बावा रखेगा और हम जानेंगे। बावा देश के लोगों से बातें करेगा और हम जानते रहेंगे। प्रश्नकर्ता : अपने देश के लोग यहाँ थे, तो हम सब ने ज्ञान पाया। अतः उस उपकार को तो भूल ही नहीं सकते। दादाश्री : लेकिन किससे नहीं भुलाया जा सकता? 'मैं' से नहीं, बावा उपकार नहीं भूलता और अपना वह देश वाला निमित्त बना, वह भी बावा है। दोनों बावा। बात सुनी और अपने बावा ने मान लिया कि अब हमें ज्ञानी को ढूंढ निकालना है। हम तो मैं, बावा और मंगलदास इतना समझ जाएँगे। उसमें सभी शास्त्र आ गए। मंगलदास, वह बाहर का स्वरूप है, बावा अर्थात् अंदर का स्वरूप और मैं, वह आत्मा है। मंगलदास नाम, बावा प्रतिष्ठित आत्मा और 'मैं' अर्थात् मूल आत्मा! बावा ही अक्षर पुरुषोत्तम कहलाता है, मूल पुरुषोत्तम नहीं। मूल पुरुषोत्तम तो पूर्ण स्वरूप में ही है। प्रश्नकर्ता : क्षर, अक्षर और अनक्षर, आपने ऐसा कहा था। दादाश्री : जो क्षर है, वह चंदूभाई है और अक्षर, वह एक हद से शुरू होकर और दूसरी हद तक है, बाकी सभी बातों में बावा। 'मैं' पूर्ण स्वरूप है! ब्रह्म, ब्रह्मा, भ्रमित खुद ही भगवान है, अतः खुद ब्रह्म ही है और खुद ब्रह्मा बन गया है। ब्रह्मा कैसे बना? रात के साढ़े दस बजने पर घर के सभी लोग कहते हैं 'अब सो जाइए' तो जब आप सोने गए तो अंदर आपके रूम में डेढ़ घंटे बाद किसी ने पूछा 'क्यों अभी तक करवटें बदल रहे हो?' तब उस समय वास्तव में आप क्या कर रहे थे? करवट बदलते समय कौन सा धंधा किया? लो, साढ़े दस बजे सब ने सो जाने को कहा, सब ने हरी झंडी दिखा दी कि 'सो जाओ अब' और किसी की तरफ
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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