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________________ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) 'बच्चे का पापा भी हूँ'। तब हम पूछे कि 'तो इस स्त्री के पति नहीं हो? तब कहता है, 'भाई पति भी मैं ही हूँ ?' तो इनमें से सही क्या है ? क्या करेक्ट है? मैं, बावा और मंगलदास। अत : यह जो मंगलदास है, जब तक 'उसे' नाम से पहचानते हैं तब तक वह मंगलदास है। वह खुद भी जानता है कि मैं मंगलदास हूँ, तब तक वह मंगलदास है। बावा, क्रिया के अधीन बावा कहलाता है और मूल रूप से तो 'मैं' ही है। 'मैं' गलत नहीं है। 'मैं' का उपयोग दूसरी जगह हुआ है, वह गलत है! जो ‘मंगलदास' है, वह जीवात्मा है। 'बावा' अंतरात्मा है और 'मैं' खुद परमात्मा है। प्रश्नकर्ता : एक ही व्यक्ति तीन प्रकार से हो सकता है? दादाश्री : है ही तीन प्रकार से। जब ये लोग कॉलेज में पढ़ते हैं तब ये क्या कहलाते हैं ? प्रश्नकर्ता : स्टूडेन्ट, विद्यार्थी। दादाश्री : दूसरे दिन जब उसकी शादी हो, तब वही विद्यार्थी जब शादी करने जाता है तो वहाँ उसे क्या कहते हैं ? दूल्हा। अरे भाई, विद्यार्थी को दूल्हा क्यों कह रहे हो सभी। तब सब लोग क्या कहते हैं ? अरे भाई, अभी तो दूल्हा है। विद्यार्थी तो तब था जब तक वह स्कूल में था, यहाँ पर नहीं है। यहाँ पर तो दूल्हा है और शादी करने से पहले अगर कुछ हो जाए और पत्नी वहीं पर मर जाए, तो फिर क्या होगा? क्या वह दूल्हा रहेगा? बारात के साथ वापस। रिटर्न विद थेन्क्स! अतः जो चीज़ परिस्थिति पर आधारित है, वह बावा है। बावा अर्थात् यहाँ पर कितने सोलिसिटर बनते हैं। तो बावा ही सोलिसिटर है। वह बावा और यह सोलिसिटर। वह बावा और यह समधी। बावा तो बाहर लोगों से कहा जा सकता है लेकिन दूसरी जगह पर तो यदि उसका जमाई आए तो क्या वह उसे बावा कहेगा? नहीं।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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