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________________ ३६० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) खत्म हो जाएगा। कर्म का कर्ता नहीं बनेगा फिर। हमारी आज्ञा में रहेगा तो एक भी कर्म नहीं बंधेगा और यहाँ पर कर्म तो सभी करेगा लेकिन कर्म नहीं बंधेगे। कर्म करने के बावजूद भी अकर्म, कृष्ण भगवान ने जो कहा था, वही दशा। आधार हटा दे तो आधारी छूट जाएगा। आत्मा में आधार-आधारी संबंध नहीं है। आत्मा में जिसने आधार रखा उसके लिए आधारी संबंध नहीं है। आधार-आधारी संबंध वाली तो इस दुनिया की टेम्परेरी चीजें हैं। इस दुनियादारी की टेम्परेरी चीजें आधार-आधारी थीं और परमानेन्ट चीज़ों से संबंध आधार-आधारी नहीं है। ऑल दीज़ रिलेटिव्स आर टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट एन्ड यू आर परमानेन्ट। चंदूभाई टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट है। फादर ऑफ द सन, टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट है, हज़बेन्ड ऑफ योर वाइफ टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट है। सभी टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट हैं एन्ड यू आर परमानेन्ट। इन पाँच इन्द्रियों से जो दिखाई देता है वह आधार-आधारी संबंध से है, सापेक्ष। जिसने जिससे अपेक्षा रखी है, वह रिलेटिव है। सापेक्ष अर्थात् रिलेटिव, वह सारा आधारी है और रियल में निरालंब। उस समय आधार-वाधार नहीं रहता। ऐसा है न, अंदर बहुत तरह के आधार हैं, एक-दो आधार नहीं हैं, अनंत आधार हैं सारे। अतः प्रकृति आमने-सामने आधार की वजह से बनी हुई है। वायु के आधार पर पित्त रहा हुआ है और पित्त के आधार पर कफ है। कफ के आधार पर यह है। हड्डी के आधार पर यह शरीर और शरीर के आधार पर ये हड्डियाँ हैं। अतः ये आधार-आधारी संबंध तरह तरह के हैं और उससे बाहर भी आधार हैं। लेकिन बाहर वाले संबंधों से इसे लेना-देना नहीं है लेकिन वह तो भ्रांति से ऐसा मानता है कि ये मेरे संबंध हैं। किस रास्ते से हो सकते हैं निरालंब? प्रश्नकर्ता : क्या इस निरालंब स्थिति की परिभाषा कौन सी कही जा सकती है? निरालंब दशा की परिभाषा किसे कहा जाएगा?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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