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________________ ३५८ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) आता इसलिए वह क्या कहता है, 'ओलंबो नहीं था साहब'। 'अरे भाई, ओलंबो का मतलब ही आलंबन है!' तब वह कहता है कि हमें बोलना नहीं आता इसलिए ओलंबो कहते हैं। ओलंबो है फिर भी टेढ़ा हो गया। यह दीवार उससे अलग बनी है। समझे ! अगर उस ओलंबो वाले से हम कहें कि आप अवलंबन लेकर आओ। तब कहेगा, 'नहीं अवलंबन की हमें ज़रूरत नहीं हैं। हमें तो ओलंबो की ज़रूरत हैं। भाषा ही वह हो गई है न, ओलंबो वाली। इसी प्रकार आलंबन से पीडित हैं ये लोग। देखो मस्ती से जीते हैं न! और फिर रोते हैं, कुटते हैं, हँसते-करते हैं, राग-द्वेष करते हैं लेकिन मूलतः खुद सनातन है इसलिए उसका खुद का 'मैं 'पन ज़रा सा भी जाता नहीं है। बूढ़ा हो जाए, तब भी कहता है 'मैं हूँ'। अरे भाई बूढ़ा हो गया फिर भी? शरीर बूढ़ा हो गया है, मैं तो हूँ ही न। फिर भी जदापन को नहीं समझते वही आश्चर्य है न! यह बहुत ही सार निकालने जैसा है, समझने जैसा है। सिर्फ शुद्धात्मा ही अवलंबन है, वह शब्द! सिर्फ वह शब्द ही ओलंबो है और इस ओलंबे से आत्मा एक्युरेट रह सकता है और बाद में इस ओलंबे की भी ज़रूरत नहीं रहेगी। निरालंब स्थिति रहेगी। अतः यह अवलंबन अर्थात् अगर इसे प्योर गुजराती भाषा में कहना हो तो ओलंबो कहेंगे तो चलेगा, तब समझ में आएगा वर्ना समझ में नहीं आएगा और आधार-आधारी ये दोनों चीजें लोड वाली हैं। आप कर्म को आधार देते हो कि 'यह मैंने किया'। इस तरह आप आधार देते हो इसलिए वह गिरता नहीं है और अगर 'मैंने नहीं किया', कहा तो वह आधार गिर जाएगा, तब फिर निराधार होकर गिर पड़ेगा। कर्म कब गिरेंगे? निराधार हो जाएँगे, तब। आधार नहीं देंगे तब फिर भी आधार देते हैं ? पूरी दुनिया आधार देती ही है। 'हाँ-हाँ! मैंने ही किया'। हम कहते हैं, 'आपने तो सिर्फ ज़रा सा हाथ ही लगाया है'। 'फिर भी यह मैंने ही किया है', ऐसा कहता है। कर्तापन छूट जाए तब जानना कि अब सब बंधन टूट गए। प्रश्नकर्ता : आत्मा का आधार नहीं है लेकिन शरीर आत्मा का अवलंबन है या नहीं?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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