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________________ [६] निरालंब ही है लेकिन औरों को भी देखता है, लेकिन वह उस वाली दृष्टि से ! इस दृष्टि से नहीं। ३२९ आपको जो यह दिया है न, वह शुद्धात्मा पद है । अब शुद्धात्मा पद से ही मोक्ष का सिक्का लग गया। शुद्धात्मा पद प्राप्त होता है लेकिन शुद्धात्मा शब्द का अवलंबन कहलाता है । जब निरालंब हो जाएगा तब आत्मा दिखाई देगा अच्छी तरह से । प्रश्नकर्ता: हाँ, तो वह निरालंब दशा कब आएगी ? दादाश्री : अब धीरे-धीरे निरालंब तरफ ही जाओगे। हमारी इन आज्ञाओं में चले कि निरालंब की तरफ चले । इन शब्दों का अवलंबन धीरे-धीरे चला जाएगा और अंत में आखिरकार निरालंब उत्पन्न होकर रहेगा। निरालंब अर्थात् उसके बाद किसी की कोई भी ज़रूरत न रहे। पूरा गाँव चला जाए तो भी घबराहट न हो, भय नहीं लगे। कुछ भी नहीं। किसी के भी अवलंबन की ज़रूरत न पड़े। अब धीरे-धीरे आप उस तरफ ही चलने लगे हो । अभी आप इतना ही करते रहो कि 'शुद्धात्मा हूँ', तो काफी है ! प्रश्नकर्ता : अतः आत्मदर्शन के बाद में जो स्थिति आती है, वह बिल्कुल निरालंब स्थिति ही हो सकती है न ? दादाश्री : निरालंब होने की तैयारियाँ होती जाती है । अवलंबन कम होते जाते हैं। अंत में निरालंब स्थिति आती है। आप सब मुझसे शुद्धात्मा प्राप्त करते हो, अब आपको अपने आप ही उस शुद्धात्मा का निरंतर लक्ष (जागृति) रहता है, सहज रूप से रहती ही है, याद नहीं करना पड़ता, आपको चिंता - वरीज़ वगैरह नहीं होतीं, संसार में क्रोध - मान - माया - लोभ नहीं होते लेकिन फिर भी वह मूल आत्मा नहीं है। आपको जो प्राप्त हुआ है, वह शुद्धात्मा है यानी कि आपने मोक्ष के पहले दरवाज़े में प्रवेश किया है इसलिए आपके लिए तय हो गया है कि अब आप मोक्ष प्राप्त करोगे लेकिन मूल आत्मा तो उससे भी बहुत आगे, मूल आत्मा बहुत दूर है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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