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________________ दादाश्री को 1958 में सूरत स्टेशन पर ज्ञान हुआ, उससे पहले उनकी स्थिति कैसी थी? अहंकारी। बंधन दशा को देखा था और फिर मुक्त दशा का अनुभव किया! ज्ञान किस तरह से हुआ? साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स। ज्ञान के समय कैसी स्थिति थी? अंदर आवरण हट जाएँ और सूझ पड़ने लगे तब उलझन में से बाहर निकलने पर कैसा फील होता है ? उसी प्रकार अज्ञान के आवरण टूटते ही 'जगत् क्या है? कौन चलाता है ? किस तरह चलता है ? मैं कौन हूँ? यह कौन है?' वह सारा ज्ञान निरावृत हो गया! आत्मा स्वाधीन है या पराधीन? अज्ञान के आधार पर पराधीन और ज्ञान के आधार पर स्वाधीन है। स्व पुरुषार्थ स्वतंत्र है और भ्रांति का पुरुषार्थ संयोगों के अधीन है! अज्ञान दशा में वास्तविक पुरुषार्थ हो ही नहीं सकता, वह तो पुण्य के बल पर चलता है। सिनेमा में जाना हो तो जल्दी से जा पाते हैं और सत्संग में नहीं, तो उसका क्या कारण है? सिनेमा में मन साथ (सहयोग) देता है। उससे वह अधोगति में जाता है। ध्येयपूर्वक जाने में मेहनत है। स्लिप तो आसानी से हुआ जा सकता है। यदि संयोगों के अधीन सत्संग में नहीं आया जा सके तो संयोग किसके अधीन हैं ? कर्म के अधीन? कर्म किसके अधीन हैं ? उसका स्वरूप समझाते हुए दादाश्री एक अद्भुत खुलासा करते हैं कि वास्तव में हम क्या हैं ? जितना अपना ज्ञान है या जितना अपना अज्ञान है, वही हम हैं और उस अनुसार संयोग मिलते हैं और उसी अनुसार कर्म बंधते हैं। बड़े व्यक्ति में उच्च प्रकार का ज्ञान होने की वजह से उच्च प्रकार के कर्म बंधते हैं । हल्के व्यक्ति में निम्न प्रकार का होने की वजह से वह निम्न प्रकार के कर्म बाँधता है। अतः खुद अहंकार या नाम नहीं है लेकिन वह खुद' है। 'वह खुद' अर्थात् क्या? ज्ञान और अज्ञान वही वह खुद, वही उसका उपादान! लेकिन क्योंकि यह सूक्ष्म बात समझ में नहीं आ सकती अतः यहाँ पर हम उसके 40
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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