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________________ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) करवाते, वे सभी शब्द गलत हैं और जहाँ शब्द ही नहीं हैं, वह अंतिम बात है। निरालंब! लेकिन शब्द स्वरूप की प्राप्ति के बाद इंसान निरालंब हो सकता है । निरालंब तो अंतिम स्टेशन है ! ३२२ I आत्मा निरालंब है, उसे किसी आधार की ज़रूरत नहीं है । उसे किसी के अवलंबन की ज़रूरत नहीं पड़ती। आत्मा तो इन घरों के आरपार निकल जाए, ऐसा है। पहाड़ों के आर-पार निकल जाए, ऐसा है । पूरी दुनिया अवलंबन वाली है पूरी ही दुनिया, देवी-देवताओं से लेकर चारों गति के लोग अवलंबन में ही खदबद, खदबद, खदबद... निरालंब को स्वतंत्र कहा गया है, एब्सल्यूट कहा गया है। हैं ? आलंबन - गुरु या शास्त्रों का ? प्रश्नकर्ता : क्या शास्त्र किसी जीव के लिए आलंबन बन सकते दादाश्री : हाँ, कई जीवों के लिए शास्त्र आलंबनरूपी बन जाते हैं। कई जीवों के लिए गुरु अवलंबन बन जाते हैं लेकिन यदि उस अवलंबन के आधार पर जीते हैं तो उस अवलंबन को बीच में छोड़ नहीं देना चाहिए। अब जैसे इसे ' अहमद किदवाई रोड' कहते हैं क्या ? तो उसे पढ़ो तब हमने जाना कि इस रास्ते से होकर जाना है लेकिन उस व्यक्ति का मकान आ जाए तब हमें उस रोड को छोड़ देना है। रोड को साथ में नहीं ले जाना है । जब मकान में जाते हैं तब क्या रोड को साथ ले जाना होता है ? एक व्यक्ति तो ऊपर की मंज़िल पर गया तो वह तीन सीढ़ियाँ लेकर चढ़ा। अरे भाई, ये सीढ़ियाँ ऊपर क्यों ले आया ? तो कहने लगा, 'इनसे मुझे बहुत प्रेम है' । ' तो भाई वहीं पर खड़ा रह न ! बेकार ही यहाँ पर क्या करने आया है? सीढ़ियों से प्यार करना है या ऊपर चढ़ना है ? क्या करना है ? यह तो सीढ़ी है। इससे प्यार नहीं करना है । ' यह सीढ़ी तो तेरे ऊपर चढ़ने के लिए हैं, प्यार करने के लिए नहीं है । प्रश्नकर्ता : इसी प्रकार यदि गुरु का आलंबन लें तो उस अवलंबन को आगे जाकर छोड़ देना चाहिए ?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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