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________________ ३१४ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) उदाहरण चारित्र में से लेते हैं, अस्तित्व की बात तो अलग ही रहती है, तो उन दोनों में भेद किस प्रकार से करना चाहिए? दादाश्री : वह चारित्र, केवलज्ञान का चारित्र नहीं है। पिछले जन्म का चारित्र है। गत जन्म का चारित्र है। यह जो चारित्र दिखाई देता है, वह इस जन्म का परिणाम नहीं है। अतः वह पूर्ण नहीं है। चारित्र पूर्ण नहीं है। उनका अस्तित्व पूर्ण है। वस्तुत्व से पूर्ण है और पूर्णत्व रूप से पूर्ण है। महावीर भगवान, यह जो आँखों से दिखाई देता है न, उस चारित्र को चारित्र नहीं कहते। ज्ञान-दर्शन-चारित्र वगैरह ऐसी चीजें नहीं है कि आँखों से दिखाई दें। वह चीज़ इन्द्रिय प्रत्यक्ष नहीं है। अतः वह चारित्र तो अलग ही है और यह जो चारित्र था वह तो पिछले जन्म का परिणाम था। सभी के जो चारित्र दिखाई देते हैं, वे पिछले जन्म के परिणाम हैं और अस्तित्व दूसरी जगह पर है। अस्तित्व में शायद फुल स्टेशन पर भी हो, अस्तित्व में 100 पर हो और चारित्र 98 पर होता है। अस्तित्व इस जन्म का है और चारित्र पिछले जन्म का। मोक्ष का मार्ग एक ही प्रश्नकर्ता : क्या मोक्ष प्राप्ति के मार्ग अलग-अलग हैं? दादाश्री : प्राप्ति का मार्ग तो एक ही होता है, विचार श्रेणी अलग-अलग होती है। प्रकृति अलग-अलग है इसलिए अलग-अलग विचार श्रेणी पर से वहाँ पर ले जाते हैं लेकिन प्रकाश के रूप में ज्ञान तो वही का वही है। प्रकाश में अंतर नहीं है। प्रकाश तो, अनंत चौबीसियाँ बीत गईं और जैसा प्रकाश था वही का वही चला आ रहा है। प्रकाश में कोई अंतर नहीं है। अगर प्रकाश में अंतर है तो अज्ञान है। वही का वही प्रकाश होना चाहिए। ज्ञान-दर्शन व चारित्र वही के वही होने चाहिए। क्रमिक मार्ग में ज्ञान, दर्शन और चारित्र है और अक्रम में दर्शन, ज्ञान और चारित्र है लेकिन प्रकाश वही का वही है। केवलज्ञान का प्रकाश वही का वही है। अंत में परिणाम क्या आएगा? केवलज्ञान। परिणाम वही का वही आएगा। इस अक्रम का तरीका पुण्यशाली लोगों को प्राप्त होगा, यह तरीका आसान है !
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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