SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [५.२] चारित्र ३०७ अतः प्रतीति को भगवान महावीर ने थ्योरी कहा है। कहते हैं कि थ्योरी जान ली और थिअरम में नहीं आया। दर्शन अर्थात् थ्योरी ऑफ एब्सल्यूटिज़म और ज्ञान अर्थात् थिअरम। थिअरम में थोड़ा बहुत आ गया है लेकिन अभी थिअरम के जितने मार्क्स मिलने चाहिए उतने ही आपको मिलेंगे लेकिन बोनस नहीं मिलेगा आपको। और जिन पर बिल्कुल भी असर नहीं होता उसे बोनस मार्क्स देते हैं। अब चारित्र बढ़ा है। चारित्र को पहचानेंगे कैसे? पता कैसे चलेगा कि अंदर चारित्र बरत रहा है? उसके बाह्य लक्षण क्या हैं? तो वह है वीतरागता। महात्मा भी कहते हैं न कि हम में वीतरागता है लेकिन अंदर पसंद और नापसंदगी रहती है। वे राग-द्वेष के मौसी के बेटे हैं। प्रश्नकर्ता : सही है दादा, लेकिन यदि राग-द्वेष चले गए हैं तो मौसी के बेटों को बहुत धमकाना नहीं है। यानी मन में राग-द्वेष जैसा कुछ रहता है... दादाश्री : लेकिन मौसी के बेटे चढ़ बैठे थे ! कहते हैं, 'हमारे भाई की गद्दी पर हैं'। वे सब कहते भी हैं, 'सगी मौसी के बेटे लगते हैं'। प्रश्नकर्ता : अर्थात् पसंद और नापसंद चले जाएँगे, पसंद और नापसंद को जानेगा और जाएँगे... दादाश्री : जाएँगे कहेंगे तो उस पर द्वेष हो जाएगा। जाएँ या आएँ, हमें वह देखने की ज़रूरत नहीं हैं। हम खुद अपनी प्रगति करते जाएँगे तो वे अपने आप ही चले जाएंगे। निकल जाएँगे। प्रश्नकर्ता : निकल जाएँगे। जाएँगे ऐसा कहेंगे.. दादाश्री : तो वह द्वेष कहलाएगा। प्रश्नकर्ता : हम अपनी प्रगति करते जाएँगे तो वे अपने आप ही चले जाएंगे। दादाश्री : वही वीतरागों का रास्ता है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy