SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [५.१] ज्ञान-दर्शन २७७ प्रश्नकर्ता : हाँ, फिर उसे ज्ञान हो जाने के बाद अंत में दर्शन तो फिर उसे ऑटोमैटिक हो जाता है। दादाश्री : ऑटोमैटिक नहीं, दर्शन होने में ही देर लगती है। प्रश्नकर्ता : तो फिर पहले दर्शन और उसके बाद ज्ञान। दादाश्री : नहीं। उस ज्ञान में से दर्शन उत्पन्न होता है। उसे ऐसा लगता है कि 'यह कुछ है'। वहाँ पर वह रुक जाता है। प्रश्नकर्ता : हाँ, ठीक है लेकिन जो हो चुका है, एक बार जाना कि यह जान लिया, देखा नहीं लेकिन जाना है, फिर ऑटोमैटिकली देखना आ ही जाएगा न? जितना जाना है। दादाश्री : वहाँ पर जो कुछ भी 'जाना' है न, वह सतही है, सुपरफ्लुअस है, और हमारे यहाँ जो 'जाना', वह अनुभव है। प्रश्नकर्ता : ठीक है, लेकिन उन लोगों में जब सुपरफ्लुअस नहीं रहता और एक्ज़ेक्ट हो जाता है, तब की स्थिति क्या होती है? कभी न कभी तो एक्जेक्टनेस में आते ही होंगे न वे लोग? तब क्या रहता है? दादाश्री : आते हैं न। प्रश्नकर्ता : तब ज्ञान और फिर दर्शन वह किस प्रकार से हो सकता है? दादाश्री : वहाँ पर फिर वापस जो ज्ञान-दर्शन-चारित्र कहते हैं न, वह व्यवहार से है। फिर आगे जाकर वही व्यवहार दर्शन और ज्ञान और चारित्र बन जाता है। नहीं तो चार शब्द बोलने पड़ेंगे। व्यवहार होगा तो ज्ञान, दर्शन, ज्ञान और चारित्र। प्रश्नकर्ता : ज्ञान, दर्शन, ज्ञान और चारित्र। दादाश्री : हाँ! उस ज्ञान (क्रमिक) का आधार लिया हो तो चार शब्द हैं।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy