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________________ २७४ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : और उसके आधार पर एक बार पूरा ही दर्शन में आ जाएगा। दादाश्री : हाँ! फिर जब तक अनुभव का 'प्रमाण' (कन्फर्मेशन) नहीं होगा तब तक ज्ञान का 'प्रमाण' नहीं होगा। देखा हुआ, जो प्रतीति में बैठ चुका है, जब तक वह अनुभव में नहीं आता, तब तक वह दर्शन में रहता है और जब अनुभव में आ जाता है तब वह ज्ञान हो जाता है। अब अपना जो है वह दर्शन, ज्ञान और चारित्र है। क्रमिक में यह ज्ञान, दर्शन और चारित्र है। अतः उनका जो ज्ञान है, वह शास्त्रों के आधार पर है। शास्त्रों में से या कहीं पर सुना हो, वह सब मतिज्ञान के रूप में परिणामित होता है और उनके लिए मतिज्ञान ही ज्ञान है। वह मतिज्ञान जब अनुभव में आता है तब दर्शन, प्रतीति स्थापित करता है। प्रश्नकर्ता : तो उसे तो वह अनुभव हो गया इसलिए तो वह प्रतीति हुई। दादाश्री : हाँ, यहाँ पर पहले प्रतीति दी जाती है। वर्ना प्रतीति तो, ज्ञान का अनुभव होने के बाद ही प्रतीति होती है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् प्राप्त संयोगों में इस दर्शन का उपयोग किया जा सकता है उससे जो अनुभव प्राप्त होगा, वही ज्ञान के रूप में परिणामित होता है न? दादाश्री : हाँ, जितने अनुभव होंगे, उतने। उसके बाद वह ज्ञेय बन जाएगा। अनुभव किसे कहते हैं कि जो बाद में बदले नहीं। प्रश्नकर्ता : तब वह दर्शन पक्का हो जाता है ? दादाश्री : दर्शन के अनुसार ही यदि कभी अनुभव हो जाएँ तो फिर अन्य संयोगों से भी वह अनुभव बदलेंगे नहीं। प्रश्नकर्ता : अब वह उसे दर्शन में तो आ गया है लेकिन उसे अनुभव किसके आधार पर होता है?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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