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________________ २६० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : इस संसार में ज्ञान-दर्शन-चारित्र सभी कुछ हैं तो सही और तप भी है लेकिन वह मिथ्या है जबकि यह सम्यक् है। मिथ्या अर्थात् विनाशी सुख के हेतु से और यह सनातन सुख के हेतु से है। भगवान ने दर्शन तो उसे कहा है कि दृष्टि बदल जाए तो दर्शन है वर्ना दर्शन नहीं है, अदर्शन है। जिस ज्ञान से दृष्टि बदल जाए वही ज्ञान, ज्ञान है और जिस ज्ञान से दृष्टि नहीं बदले वह अज्ञान है। अतः अदर्शन है, अज्ञान है। यह दर्शन है, ज्ञान है। जहाँ पर दर्शन व ज्ञान हैं, भगवान ने उसे चारित्र कहा है और जहाँ पर अदर्शन और अज्ञान हैं, उसे कुचारित्र कहा है। ज्ञान पर जो आवरण हैं, वह अज्ञान है और दर्शन पर जो आवरण हैं, वह अदर्शन है। अज्ञान और अदर्शन का परिणाम क्या आता है? 'कषाय'। और ज्ञान व दर्शन का फल क्या है ? 'समाधि'। आत्मा का दर्शन, अनुभव और ज्ञान प्रश्नकर्ता : प्रतीति का मतलब क्या है? दादाश्री : कोई कहे कि यह मेरी स्त्री है। तब कोई पूछे 'नहीं अभी तक समझ में नहीं आया'। तब कहता है, 'पत्नी है'। उसके शब्द तो हैं ही। उसे स्त्री शब्द से समझ में नहीं आया तो पत्नी कहता है तब समझ में आएगा न? तो प्रतीति अर्थात् दर्शन। प्रश्नकर्ता : 'मैं शुद्धात्मा हूँ', ऐसा श्रद्धा में रहे तो वह प्रतीति कहलाएगी न? दादाश्री : श्रद्धा उसे कहते हैं जो हट जाती है, विश्वास उठ जाता है। बैठी हुई श्रद्धा उठ जाती है, प्रतीति नहीं उठती। प्रश्नकर्ता : तो यह दर्शन कहलाएगा? दादाश्री : हाँ, दर्शन कहलाएगा। जो उठेगा नहीं। प्रश्नकर्ता : दर्शन का मतलब क्या है ?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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