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________________ [४] ज्ञान-अज्ञान दादाश्री : सभी को ऐसा एक सरीखा ही रहता है न! प्रश्नकर्ता : बाहर सभी लागणियाँ रहती हैं ? २५५ दादाश्री : हाँ, सभी लागणियाँ रहती हैं । हँसते हैं, खूब हँसते हैं। रोने की जगह पर रोते भी हैं। अगर किसी की माँ मर जाए तो वह पाँच मिनट के लिए रोएगा या नहीं रोएगा ? और रोने का मतलब यह नहीं कि उनका ज्ञान चला गया । या फिर अगर बहुत वेदना होने लगे, किसी का हाथ काट दिया जाए तो आँखों में पानी भर आए तो उससे कहीं ज्ञान चला नहीं गया। आज का ज्ञान अलग, तो कषाय नहीं प्रश्नकर्ता : टोटल सेपरेशन हो जाए, इसका मतलब क्रोध-मानमाया-लोभ संपूर्ण रूप से चले गए ? - I दादाश्री : वे तो, जब से प्रतीति होती है, तभी से खत्म हो जाते हैं । 'मैं शुद्धात्मा हूँ, ऐसी प्रतीति होते ही खत्म हो जाते हैं । क्रोध - मानमाया-लोभ कब कहा जाता है ? उदय का ज्ञान और आज का ज्ञान एक हो जाएँ, तब उसे क्रोध - मान-माया - लोभ कहते हैं । यदि आज का ज्ञान अलग रहता है तो उसे क्रोध - मान-माया - लोभ नहीं कहा जाएगा। दोनों का संयोग हो जाए तभी क्रोध कहलाता है, वर्ना क्रोध नहीं कहलाएगा। उसकी डेफिनेशन है। अंदर से चंदूभाई क्रोध करते हैं और आप कहते हो कि, 'ऐसा नहीं होना चाहिए' । अतः अभिप्राय बिल्कुल अलग है । अर्थात् यह हिंसकभाव और यह अहिंसकभाव । दोनों के बीच का तन्मयाकार वाला भाव खत्म हो गया । क्रोध - मान - माया - लोभ में, चारों में जो हिंसकभाव होते हैं, वे खत्म हो जाते हैं । उसे खुद को आज हिंसकभाव नहीं है, इसलिए वह क्रोध नहीं है । इन प्रश्नकर्ता : जब टोटल सेपरेशन हो जाता है तब प्रज्ञा का उदय होता है और तब जो लौकिक बुद्धि है, वह चली जाती है ? दादाश्री : अलग हो जाने पर बुद्धि खत्म हो जाती है और प्रज्ञा का
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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