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________________ [४] ज्ञान-अज्ञान २५३ प्रश्नकर्ता : यों तो अच्छा लगता है। दादाश्री : आपको कहना है, 'बहुत रौब मार रहे हो? अच्छे मज़े हैं आपको तो! कोई हर्ज नहीं लेकिन अब जरा वापस राह पर आ जाओ'। उसमें हर्ज नहीं है, वह डिस्चार्ज परिणाम है। प्रश्नकर्ता : नहीं। लेकिन ज़रा अड़चन... इससे रियलाइज़ेशन में थोड़ा अब्स्ट्रक्शन नहीं हो जाएगा? दादाश्री : नहीं! रियलाइज़ तो सब हो ही चुका है लेकिन इसे आचरण में आने में देर लगेगी। राग-द्वेष चले गए हैं, इसलिए ऐसा कहा जाएगा कि आत्मा प्राप्त हो गया। सौ प्रतिशत ऐसा कह सकते हैं कि आत्मा प्राप्त हो गया है। सौ प्रतिशत आत्मा रूप हो चुके हो आप। यह सारा जो कचरा माल भरा हुआ है, जैसे-जैसे वह निकलता जाएगा, वैसे-वैसे परिणाम आता जाएगा। प्रश्नकर्ता : दादा जब मान खड़ा होता है तब हमें अच्छा तो नहीं लगता। लगता है कि गलत ही है। वहाँ पर हमें क्या जागृति रखनी चाहिए या फिर सिर्फ उसे देखते ही रहना है? । दादाश्री : नहीं-नहीं। वह जो मान खड़ा होता है उसे देखना है। वही ज्ञान कहलाता है। देखने वाला ज्ञान कहलाता है और जो खड़ा होता है, वह अज्ञान है। ज्ञान अज्ञान को देखता है। फिर चाहे एक अंश मान हो या पचास अंश मान हो लेकिन जो अज्ञान को देखे, वह ज्ञानी। वह अज्ञान है, ऐसा आपको पता चलता है न? प्रश्नकर्ता : यह मान वाला अज्ञान कहलाएगा? दादाश्री : वह मान वाला अज्ञान है, ऐसा आपको पता चलता है न? आप उस अज्ञान को देखते हो इसलिए आप ज्ञानी हो, वर्ना अज्ञानी को तो अज्ञान का पता नहीं चल सकता न! उसमें कुछ गलत नहीं है। प्रश्नकर्ता : जितनी आसानी से राग-द्वेष निकल गए हैं उतनी आसानी से यह नहीं निकल रहा है झट से!
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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