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________________ [४] ज्ञान-अज्ञान २४३ दादाश्री : उसकी उत्पत्ति है ही नहीं न! वह तो है ही पहले से। अनादिकाल से है ही। उसका अंत आएगा। उसे जब ज्ञानीपुरूष मिल जाएँगे तब अंत आएगा। प्रश्नकर्ता : यह जो व्यवहार आत्मा को भी भगवान बनाना है, पुद्गल को भी भगवान बनाना है तो वह किस तरह से बनाना है ? दादाश्री : यह बना रहे हैं, उसी तरह से। ज्ञानी के पास बैठोगे तो फिर आप भी उतने ही ज्ञानी बन जाओगे। मैं सर्वज्ञ के पास रहूँ तो सर्वज्ञ बन जाऊँगा। आप मेरे साथ रहोगे तो मेरे जैसे बन जाओगे, ऐसे करते-करते सब होते-होते हो रहा है। अंत में जब खुद के स्वरूप को जानेगा, तब कभी न कभी स्वरूपमय बन जाएगा। पहले श्रद्धा में आता है। फिर धीरे-धीरे ज्ञान में आता है और फिर वर्तन में आता है। वर्तन में आया कि पूर्ण हो गया। ज्ञान-दर्शन-चारित्र और तप पूर्ण हो जाएगा। शुद्ध ज्ञान रखता है मिलावट रहित शुद्ध ज्ञान से मोक्ष है। सद् ज्ञान से सुख और विपरीत ज्ञान से दुःख है। ज्ञान खुद ही मुक्ति है। जो ज्ञान अनात्मा के साथ एकाकार नहीं होने देता, पुद्गल में एकाकार नहीं होने देता, वह ज्ञान ही आत्मा है। आत्मा ढूँढना हो तो यही है। जो ज्ञान परभाव में एकाकार नहीं होने देता, पररमणता में एकाकार नहीं होने देता, वही ज्ञान है और वही आत्मा है। होम डिपार्टमेन्ट में रखता है, फॉरेन में घुसने ही नहीं देता। तो भगवान कैसे होंगे? तब मैंने कहा, 'भगवान शुद्ध ही हैं। शुद्ध ज्ञान के अलावा भगवान अन्य कोई चीज़ नहीं है। लेकिन शुद्ध ज्ञान किसे कहेंगे? कौन से थर्मामीटर के हिसाब से वह शुद्ध ज्ञान कहलाएगा? जिस ज्ञान से राग-द्वेष और भय नहीं होते, वह ज्ञान शुद्ध ज्ञान है और शुद्ध ज्ञान ही परमात्मा है। ज्योति स्वरूप शुद्ध ज्ञान, जो परम ज्योति स्वरूप हैं, वही परमात्मा हैं। परमात्मा कोई स्थूल चीज़ नहीं है, ज्ञान स्वरूप से हैं। एब्सल्यूट ज्ञान मात्र हैं। एब्सल्यूट इसीलिए
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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