SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) करता है। उसे वह जो ज्ञान है, वह चेतन ज्ञान नहीं है, शुष्क ज्ञान है। अतः करना पड़ता है। उसे ज्ञान के अनुसार बनना पड़ता है। वह अगर हुआ तो हुआ, वर्ना यदि एडजस्ट नहीं हुआ तो ज्ञान में तो रहा कि ऐसा करना चाहिए लेकिन क्योंकि भूमिका तैयार नहीं है इसलिए ऐसा हो नहीं पाता। प्रश्नकर्ता : लेकिन व्यवहार में ऐसा होता है न कि पूरे संसार काल में नया ज्ञान ग्रहण करता जाता है ? दादाश्री : नहीं! इतना ही है कि वह निरावृत्त होता जाता है। जो ज्ञान है वही वापस निरावृत्त होता है। नया नहीं आता। जो आवरण है वह खुलता जाता है। नया ज्ञान होगा ही कहाँ से? तूने ऐसा क्यों पूछा? प्रश्नकर्ता : यह तो व्यवहार में ऐसा दिखाई देता है कि वह डॉक्टरी का ज्ञान सीख रहा है, फिर और कोई नया ज्ञान सीख रहा है। दादाश्री : वह तो, आवरण खुलते हैं। यानी कि वह जहाँ प्रयत्न करता है, वहाँ के आवरण खुलते हैं। डॉक्टरी की पढ़ाई करता है तो डॉक्टर बनता है, इंजीनियरिंग की पढ़ाई करता है तो इंजीनियर बनता है। रियल ज्ञान - रिलेटिव ज्ञान साइन्टिस्टों को समझ में आएगा क्योंकि ये सभी बातें ऐसी हैं कि जिनसे उन्हें मदद मिलेगी। वे उलझते हैं कि अरे यह हमें ऐसा-ऐसा पता चला है लेकिन लोग ऐसा क्यों मानते हैं ? उसे जो पता चला है, उन सब में उसे हेल्प हो जाएगी क्योंकि रिलेटिव और रियल 99 प्रतिशत तक एक सरीखे ही हैं, 99 पोइन्ट तक। कॉज़ वाला जो इफेक्ट है, जिस इफेक्ट में से कॉज़ उत्पन्न होते हैं, उसका फोटो खिंचता है लेकिन जिस इफेक्ट में से कॉज़ उत्पन्न नहीं होते, उसका फोटो ही नहीं खिंच सकता। अतः 99 प्रतिशत तक कॉज़ वाला इफेक्ट रहता है, 100वें प्रतिशत में कॉज़ वाला इफेक्ट नहीं रहता। प्रश्नकर्ता : वह किस प्रकार से?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy