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________________ [४] ज्ञान-अज्ञान २३३ दादाश्री : वह एकाकार होता है तभी न! लेकिन अज्ञान परिणाम पुद्गल सहित ही होता है। ऐसा नहीं है कि उसमें एकाकार होता है। अज्ञान परिणाम है ही पुद्गल की वजह से। अगर पुद्गल नहीं होता तो ज्ञान परिणाम होता। समझ में नहीं बैठा (आया) फिर? खड़ा हो गया? प्रश्नकर्ता : नहीं, नहीं, बैठ गया न! दादाश्री : हाँ कहने से वापस बैठ जाएगा। वर्ना अगर बैठा हुआ होगा तो भी वापस खड़ा हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : जब तक वह ठीक से नहीं बैठे तभी तक खड़ा होगा न? दादाश्री : खड़ा हो जाएगा, हाँ। उसे बिठा देना है। बैठाने पर ही पूरा होगा। पूरे हिंदुस्तान में किसी को नहीं बैठता। यह समझ अलग प्रकार की है। आपको पहँच जाती है यह! आपको बैठ जाती है। देखो न, आश्चर्य है न! नहीं तो नहीं बैठ सकती। प्रश्नकर्ता : लेकिन ज्ञान परिणाम के स्पंदन तो हैं ही न! दादाश्री : नहीं। उसके स्पंदन नहीं होते। ये सारे स्पंदन तो अज्ञान में ही हैं। ज्ञान परिणाम तो, जैसे सूर्यनारायण का यह जो प्रकाश आता है न, उसमें स्पंदन नहीं होते। वह तो स्वाभाविकता है। अज्ञान दशा में स्पंदन होते हैं। स्पंदन अर्थात् लहरें उठना। कई बार बड़ी उठती हैं और कभी छोटी उठती हैं। इस ज्ञान प्रकाश में गाँठे-वाँठें नहीं होतीं इसीलिए निग्रंथ कहा है। निग्रंथ मुनि कहा गया है। गाँठ वाला तो हमेशा फूटता रहता है। पानी मिलने पर फूटती हैं गाँठें। अतः क्रोध-मान-माया-लोभ, ये सभी गाँठें कहलाती हैं। अभी अगर लक्ष्मी दिख जाए तो लोभ की गाँठे फूटेंगी एकदम से। हम विवाह समारोह में जाएँ तो मान की गाँठ फूटती है जबकि ज्ञान में गाँठें नहीं होती इसलिए किसी भी जगह पर नहीं फूटतीं।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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