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________________ [४] ज्ञान-अज्ञान २३१ चला जाएगा। तब तक ज्ञान और अज्ञान साथ में ही रहेंगे। उसे क्षयोपक्षम कहा जाता है। प्रश्नकर्ता : तो ज्ञान मिलने के बाद जो पुरुष बनता है, तो कौन सा भाग पुरुष कहलाता है? दादाश्री : ज्ञान ही पुरुष है। उसमें फिर भाग कैसा? अज्ञान ही प्रकृति है। ज्ञान-अज्ञान का मिश्रित स्वरूप ही प्रकृति है। ज्ञान ही पुरुष है, वही परमात्मा है। ज्ञान ही आत्मा है। जो ज्ञान विज्ञान स्वरूपी हो, वह आत्मा है, वही परमात्मा है। ज्ञान अर्थात् प्रकाश, समझ नहीं! प्रश्नकर्ता : 'ज्ञान अर्थात् प्रकाश, वह समझ नहीं' है, यह समझाइए। दादाश्री : ज्ञान से हम किसी को प्रकाश देते हैं तो उसे समझ में आता है कि यह बात इस तरह से करनी है। ज्ञान का प्रकाश नहीं हो तो समझ में ही नहीं आएगा न! समझ अलग चीज़ है और ज्ञान अलग चीज़ है। हम जब ज्ञान बताते हैं तब उसकी समझ में आता है कि 'स्टेशन इस तरफ है वगैरह, वगैरह। इस रास्ते से इस रास्ते पर, इस रास्ते पर', ऐसा उसकी समझ में आ जाता है। तब कहता है, 'हाँ, ठीक है। हाँ, मुझे पता चल गया'। अतः समझ अलग चीज़ है जबकि ज्ञान, वह प्रकाश है और समझ अर्थात् उस प्रकाश से हमें फल प्राप्त होता है और फिर फल से कार्य होता है। यहाँ से स्टेशन जाने का 'ज्ञान' वह आपको समझ देता है। ज्ञान बताता है पहले पूरा नकशा बनाकर दे देता है, तब फिर आपकी समझ में आ जाता है। फिर आप कहते हो कि, 'मुझे समझ में आ गया'। जब कोई ज्ञान बताता है तब आप क्या कहते हो? प्रश्नकर्ता : समझ में आ गया। दादाश्री : 'मुझे समझ में आ गया!' यह समझना अलग चीज़
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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