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________________ २१८ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : किसी ने कहा था। दादाश्री : नहीं, लेकिन कहे हुए ज्ञान का क्या करना है? जाना हुआ ज्ञान होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : दादा, लेकिन अगर कहा गया है तो वह सही ही कहा होगा न! दादाश्री : उस पर विश्वास है, इसीलिए न! इस कहे हुए ज्ञान से जगत् चल रहा है और जाने हुए ज्ञान से मोक्ष में जाते हैं। प्रश्नकर्ता : ज्ञान अर्थात् जो सिर्फ जाना हुआ है, वही ज्ञान कहलाता दादाश्री : बस, वास्तव में हम जो हैं, शुद्धात्मा हैं, वह जाना हुआ, अनुभव किया हुआ, वही ज्ञान है। प्रश्नकर्ता : बाकी सबकुछ कहा हुआ ही है ? दादाश्री : कहा हुआ ज्ञान है। आपका नाम चंदूभाई है, ऐसा आपने कहाँ से जाना? इसकी पुष्टि कैसे हुई? तो कहते हैं कि 'बूआ ने रख दिया'। बस इतना ही जानता है वह, अतः यह कहा हुआ ज्ञान है। प्रश्नकर्ता : और आत्मा का ज्ञान अनुभव किया हुआ है। दादाश्री : जो अनुभव किया हुआ ज्ञान है वह मोक्ष में ले जाता है और ये कहा हुआ ज्ञान संसार में भटकाता है। आधार देता है अज्ञान को... मूलतः तो अनाथ है और फिर खुद ही उसे आधार देता है। आधारी बन जाता है और 'खुद' ही अज्ञान को आधार देता है। मैं ही चंदूलाल हूँ, मुझे नहीं पहचाना? अरे भाई, इसे क्यों आधार दे रहा है? यह तो अज्ञान है ! उसी को आधार देता रहता है जबकि हमें यह ज्ञान प्राप्त हुआ तो अज्ञान निराधार हुआ कि खत्म। हला मानही पहचान
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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