SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी - १३ (उत्तरार्ध) और सुधरता भी नहीं। उसमें कोई बदलाव नहीं आता। जैसे ये लोग सूर्यनारायण की उपस्थिति में काम करते हैं, उसी प्रकार अंदर यह सारा काम चल रहा है। यह सब आत्मा की उपस्थिति से चल रहा है। अब जब आपका सारा अहंकार विलय हो जाएगा, खत्म हो जाएगा तब फिर 'वही' मुक्त हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : अहंकार को कैसे विलय करें ? २०८ दादाश्री : यहाँ मेरे पास आओगे तो दो घंटों में विलय कर दूँगा । बहुत सारे लोगों का अहंकार विलय कर दिया है। अज्ञान का प्रेरक कौन ? प्रश्नकर्ता : यह संसार अज्ञान से खड़ा हो गया है तो अज्ञान का प्रेरणा बल कौन है ? दादाश्री : संयोग | प्रश्नकर्ता: और ज्ञान का प्रेरणा बल कौन है ? दादाश्री : ज्ञान का कोई प्रेरणा बल है ही नहीं इस दुनिया में । सबकुछ संयोगों से ही होता है। संयोगों से ही अज्ञान उत्पन्न होता है । संयोगों से ज्ञान होता है । ओन्ली साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है यह। जगत् का अधिष्ठान प्रश्नकर्ता : क्या यह संसार अज्ञान से खड़ा हो गया है ? दादाश्री : हाँ, अज्ञान से । वह भी सिर्फ स्वरूप का अज्ञान । ज्ञान जब विशेष ज्ञान बन जाता है, उसी को अज्ञान कहते हैं । प्रश्नकर्ता : इसमें पूछा गया है कि 'अधिष्ठान अर्थात् जिसमें से वस्तु उत्पन्न हुई, जिसमें वह स्थिर रही और जिसमें वह लय हो गई' । इस परिभाषा के अनुसार जगत् का अधिष्ठान समझाइए ।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy