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________________ १८८ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) गया, अहंकार का। लेकिन फिर आगे-आगे दिखाने में हर्ज क्या है ? कौन दिखाता है यह? प्रज्ञा दिखाती है यह सब। जो पराक्रम करता है, वह भी पुद्गल प्रश्नकर्ता : आप एक ऐसा उदाहरण देते थे कि रात के बारह बजे कोई आए और फिर भी अगर अपना भाव नहीं बिगड़े तो वह पुरुषार्थ है और अगर असर ही नहीं हो तो वह पराक्रम है। दादाश्री : वह भाव हमें नहीं करना है। वह तो हमें देखना है कि उल्टा भाव नहीं हो, तो वह उल्टा भाव हम नहीं कर रहे हैं। जो भाव कर रहा है, वह अलग है। हमें तो देखना है। हम आपको उदाहरण देंगे, तभी आप समझ सकोगे न, वर्ना कैसे समझोगे? उल्टा भाव करते हो तो जो करने वाला है, वह पुद्गल है और आप शुद्धात्मा हो। जो उल्टा भाव करता है, वह पुद्गल करता है और जो सीधा भाव करता है, वह भी पुद्गल करता है। लेकिन जो उल्टा या सुल्टा भाव करता है, उसे जो जानता है, वह शुद्धात्मा है। लेकिन उसके लिए भी हम आपसे ऐसा ही कहते हैं कि आपने उल्टा किया तब अगर वह सीधा करके आ जाए तो वह दोनों ही आपको देखने हैं ! लेकिन उल्टा भाव नहीं होना चाहिए, ऐसा कहना चाहते हैं और अगर हो जाता है तो भी ज्ञाता-दृष्टा रहना चाहिए। प्रश्नकर्ता : लेकिन अभी एक चीज़ ठीक से समझ में नहीं आई। अच्छा या बुरा भाव दोनों ही पुद्गल करता है, तो पराक्रम कौन करता है? दादाश्री : वह पराक्रम भी पुद्गल का है। प्रश्नकर्ता : वह पराक्रम भी पुद्गल का ही है? दादाश्री : नहीं तो फिर किसका है वह पराक्रम? पिछले जन्म में जो पुरुषार्थ किया था, जिसे अज्ञानता से हम पुरुषार्थ मानते थे, आज वह पराक्रम के रूप में आया है। अब हम ज्ञाता-दृष्टा बन गए हैं और
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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