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________________ १८६ प्रश्नकर्ता : नहीं होगी । दादाश्री : राग-द्वेष होते हैं ? प्रश्नकर्ता : अभाव होता है । आप्तवाणी - १३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : किस पर ? प्रश्नकर्ता : कार्यों पर । जो कार्य करते थे, उन पर अभाव होता है । दादाश्री : ओ हो हो, उसका पछतावा रहता है न! पछतावे को अभाव नहीं कहते। पछतावा है, लेकिन चंदूभाई को रहता है या तुझे रहता है ? प्रश्नकर्ता : चंदूभाई को रहता है । दादाश्री : तो फिर तू क्यों अपने सिर ले रहा है ? यदि वह पछतावा नहीं करे तब हमें कहना चाहिए, कि 'पछतावा करो। ऐसा क्यों किया ? अतिक्रमण क्यों किया ? प्रतिक्रमण करो' । कचरा कौन दिखाएगा ? प्रश्नकर्ता : कई बार हम जानते हैं कि यह चीज़ नहीं करनी है। हम मना भी करते हैं कि 'चंदूभाई यह करने जैसा नहीं है'। फिर भी चंदूभाई करता है तो उसे क्या समझें ? दादाश्री : वह तो उसने गंदा किया है, वह धो रहा है। हमने कोई गंदगी नहीं की है और करेंगे भी नहीं । जिसने की है उसने धो दिया। हमें कहना है, 'अब गंदा मत करना' । वे यह सब धो रहे हों तो हमें समझना है कि पहले किया होगा इसलिए धो रहे होंगे । अतः हमें देखते रहना है । बाद में फिर से कहना 'अब मत करना' । इसलिए अब कचरा बुहारते रहना है। आगे का जो भी नया काम हो, हमें वह उसे दिखाते रहना है। काम का पता हमें ही चलेगा कि क्या काम करना बाकी है ? किसी जगह पर देखने जाएँ तब कहना कि आप
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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