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________________ १८० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : मैंने तो देखकर कहा है। क्या होने वाला है, वह देखकर बताता हूँ कि 2005 में यह हिंदुस्तान वर्ल्ड का केन्द्र बन चुका होगा! ऐसा 1971 में पुस्तक में लिखा है इसलिए नहीं कहता हूँ कि इन्डिया मेरा देश है। जैसा है वैसा, वीतरागता से कह रहा हूँ। हमें ऐसा नहीं है कि 'यह मेरा है'। व्यवहार से कह सकते हैं, वास्तव में नहीं। बीड़ा उठाया है हमने जगत् कल्याण का खटपटिया का मतलब ये खटपट करने को रह गए हैं हम, इसलिए हम खटपटिया वीतराग कहलाते हैं। सिर्फ इतनी ही इच्छा है, अन्य कोई इच्छा नहीं है। 'किस तरह से लोगों को शांति प्राप्त हो?' इसीलिए यह बीड़ा उठाया है। रोज़ 11 घंटे यह सत्संग करता हूँ। प्रश्नकर्ता : आपकी यह इच्छा रही है, तो उससे फिर आपकी चार डिग्री पूर्ण नहीं होगी न? बंधनरूप है न यह इच्छा? दादाश्री : नहीं, यह जो इच्छा रह गई है, वह तो डिस्चार्ज इच्छा है। चार्ज में ऐसा नहीं है। चार्ज बंद हो चुका है। अगर चार्ज बंद है तो परेशानी नहीं है। जो 'दादा की जंजीर' खींचेगा उसका काम हो जाएगा क्योंकि वीतराग कभी किसी काल में होते ही नहीं है न और इस काल में पूर्ण वीतराग नहीं हो सकते, लेकिन तमाम जीवों के लिए हम तो संपूर्ण वीतराग ही हैं। जीवमात्र के प्रति। सिर्फ हमारे कर्मों के प्रति ही हमें राग रहता है। सिर्फ कर्म खपाने जितना। थोड़ा राग रह गया है, वह भी जगत् कल्याण करने की खटपट के लिए, और वह नुकसानदेह नहीं है न? इसे भी राग ही कहते हैं। हमारी गर्ज थी इसीलिए वहाँ से उठकर यहाँ आए! प्रश्नकर्ता : इसलिए आप कहते हैं कि हम खटपटिया वीतराग हैं ! दादाश्री : हाँ! तो और क्या कहेंगे? खटपटिया लेकिन वीतराग हैं। ऐसा खटपटिया ढूँढ लाओ न, जो वीतराग हो! एक भी दिन ऐसा
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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