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________________ १७६ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : हाँ, लेकिन वे जिनमें देह के प्रति मालिकीपना चला जाएगा उनमें करुणा उत्पन्न हुए बगैर रहेगी ही नहीं। क्योंकि जब तक खुद की देह पर ज़रा सा भी मालिकीपना है, ज्यादा नहीं तो ज़रा सा भी, तब तक करुणा उत्पन्न नहीं होगी। प्रश्नकर्ता : वीतरागता में पसंद-नापसंद रहती है क्या? दादाश्री : वीतरागता में अगर पसंद-नापसंद है तो वह वीतरागता की निचली स्थिति कही जाएगी। वह वीतरागता की शुरुआत कही जाएगी। अर्थात् वह वीतरागता का एन्ड नहीं है। शुरुआत में पसंद-नापसंद अर्थात् लाइक-डिसलाइक दोनों ही रहते हैं। वह राग-द्वेष नहीं है लेकिन लाइक और डिसलाइक है। प्रश्नकर्ता : करुणा को आत्मा का मूल गुण कहा जा सकता है क्या? दादाश्री : करुणा आत्मा का गुण है ही नहीं। करुणा तो इस बात का लक्षण है कि 'आत्मा प्राप्त हो चुका है, वे वीतराग हो चुके हैं। लक्षण पर से हमें पता चलता है कि यह क्या चीज़ है। 'क्रोध' आत्मा का मूल गुण नहीं है, चेतन का और जड़ का भी मूल गुण नहीं है। वह व्यतिरेक गुण है और उसका प्रतिपक्षी गुण 'क्षमा' भी आत्मा का गुण नहीं है। क्षमा पर से आप जान सकते हैं कि यह वीतराग हो चुके हैं। क्षमा भी सहज क्षमा होनी चाहिए। 'हम आपको क्षमा करते हैं' ऐसा नहीं, और वह क्षमा भी माँगनी नहीं पड़ती, दे ही देते हैं। अर्थात् इतने गुण सहज रूप से होते हैं। सहज विनम्रता होती है, सहज क्षमा होती है, सहज सरलता होती है। सरलता लानी नहीं पड़ती फिर संसार में सहज संतोष होता है अर्थात् सारे सहज गुण उत्पन्न हो चुके होते हैं लेकिन वे आत्मा के गुण नहीं हैं। इन गुणों पर से हम नाप सकते हैं कि आत्मा यहाँ तक पहुँचा। आत्मा के गुण नहीं हैं। आत्मा के गुण तो वे हैं जो खुद के साथ वहाँ अंत तक जाते हैं, वे सभी गुण आत्मा के हैं। व्यवहार में, हमने जो बताए हैं, वे सभी उसके लक्षण हैं। हम किसी को
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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