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________________ १५० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) चिपक जाएँगी तो दादा अगले जन्म में काम आएंगे। उसमें क्या बिगड़ जाएगा! अतः वे वृत्तियाँ उठ जाएँगी, वृत्तियाँ दूसरी जगह पर बहुत नहीं जाएँगी। न जाएँ तो बहुत हो गया। प्रश्नकर्ता : प्रशस्त राग होने पर दूसरी सभी वृत्तियाँ बिल्कुल टूट जाती हैं? दादाश्री : टूट जाती हैं इसलिए हम कहते हैं न कि प्रशस्त राग करना भाई और सिर्फ वही एक राग बिल्कुल खुले तौर पर करना भाई! उसमें हर्ज नहीं है। अगर ऐसे उपकारी पर प्रशस्त राग नहीं होगा तो कहाँ पर होगा? गौतम स्वामी को भगवान पर प्रशस्त राग क्यों था, क्योंकि भगवान महावीर का उपकार था। ज़बरदस्त उपकार था। उन्हें बुलाकर मोक्षमार्ग दिया था। गणधर पद दिया। फिर भगवान ने यह राग छुड़वाने के लिए उन्हें बाहर भेज दिया। वह उपकार था। फिर अंदर लगा कि यह इतना बड़ा राग अंदर घुस गया है। 'तू प्रमाद छोड़! छोड़!' फिर भगवान ने चमत्कार किया, बाहर भेज दिया और फिर उनका (महावीर भगवान का) निर्वाण हो गया। तब गौतम स्वामी को तुरंत ही ऐसा लगा कि “अरे ! उन्हें अंदर धक्का लगा कि भगवान ने ऐसा किया!' उन्हें ऐसा लगा कि क्या भगवान ऐसा कार्य करें..." फिर जब लगा कि 'भगवान तो ऐसी भूल नहीं कर सकते'। यह तो, मुझसे भूल हो रही है। जाँच की तो पता चला कि 'ओहोहो! वे तो वीतराग थे और यह राग तो मुझे ही है इसलिए भगवान मेरे इस राग को निकालने के लिए कहकर गए हैं। फिर उन्हें केवलज्ञान हो गया, केवलज्ञान प्रकट हो गया। इसी वजह से रुका हुआ था। प्रश्नकर्ता : दादा, हमारा यह प्रशस्त राग भी अंतिम घड़ी में चला जाएगा न? आखिर में चला जाएगा न? दादाश्री : वहाँ पर छूट जाएगा। वहाँ पर सीमंधर स्वामी के दर्शन करते ही पूरा उखड़ जाएगा। यह तो ऐसा है कि अगर यहाँ पर इससे उच्च दर्शन करने को मिल जाएँ तो अभी भी उखड़ सकता है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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