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________________ [२.३] वीतद्वेष १३५ प्रश्नकर्ता : बहुत राग हो तो होते हैं, वह बात सही है। दादाश्री : कम हो तब भी होता है यह तो। प्रश्नकर्ता : अगर कम है तो थोड़ा बहुत होता है जबकि उसमें ज़्यादा होता है। दादाश्री : लेकिन होता ज़रूर है। बच्चे पर बहुत राग था, इकलौता बेटा था, जब उसके पिता जी छः महीने बाद मुंबई से आए तो बेटा पापा जी, पापा जी कहने लगा तो उन्होंने उसे एकदम गोद में उठा लिया। उठाकर उसे ऐसा दबाया कि बच्चा बहुत दब गया। तब उसने काट लिया। अतिरेक से बिगड़ जाता है सभी कुछ। उसकी हद सीख लेनी चाहिए। सही अनुपात में (बेलेन्स) करते-करते वीतराग होते जाएँगे। धीरे-धीरे अनुपात (लिमिट) में लाते-लाते वीतराग हो सकते हैं। बच्चा काट लेगा या नहीं? प्रश्नकर्ता : हाँ, हाँ, काट लेगा। दादाश्री : वह सही था या बच्चा सही था? प्रश्नकर्ता : बच्चे ने सही ही किया। हाँ, ठीक है। दादाश्री : फिर भी ये बाप बार-बार दबाते रहते हैं। प्रश्नकर्ता : बहुत राग किया तो उसमें उस बच्चे को द्वेष हो गया। दादाश्री : नहीं, बहुत राग हुआ इसलिए द्वेष हुआ। फिर जब उसने काट खाया तो पिता को द्वेष हो गया। बेटे को उतारकर मारा। तब भी वह बाप समझा नहीं। बेटे को ज़्यादा दबाया। वह तो ऐसा समझा कि मैंने प्रेम किया, फिर भी इसने काट खाया ! ऐसी है यह सारी दुनिया, अंधे लोग अंधेरे में चल रहे हैं लेकिन क्या हो सकता है? अतः मैंने जो चश्मे दिए हैं, उन्हें पहनकर चलना आराम से, मज़े से। चश्मे तो अच्छे हैं, ठोकर नहीं लगती न?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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