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________________ [२.३] वीतद्वेष १२७ दादाश्री : किसी को नाम मात्र को भी द्वेष नहीं होता। सिर्फ इतना है कि आम ज़रूर भाते हैं, यह सब अच्छा लगता है, मीठा लगता है सब। जब कड़वा हो न तो कड़वा ले ज़रूर लेते हैं लेकिन द्वेष नहीं होता। समभाव से निकाल कर देते हैं, हल ले आते हैं । अतः वीतद्वेष बना दिया, उसके बाद बचा वीतराग। भूख का मूल कारण द्वेष वीतराग को कोई कर्तापन नहीं होता । कुछ करना नहीं पड़ता अपने आप ही होता रहता है क्योंकि द्वेष अर्थात् इंसान राग से खाता है या द्वेष से खाता है? इंसान जब खाने जाता है तो वह राग से खाता है या द्वेष से ? प्रश्नकर्ता : राग से खाता है ! दादाश्री : ना, द्वेष से खाता है । प्रश्नकर्ता : वह समझाइए दादा, वह ठीक से समझ में नहीं आया। दादाश्री : जब तक उसे भूख नहीं लगती न, तब तक बैठा रहता है बेचारा। जब भूख लगती है न, तब अंदर दुःख होता है, दुःख होने पर द्वेष करता है न! भूख लगती है, वही द्वेष का कारण है। प्यास लगती है, वह द्वेष का कारण है । उसे द्वेष होता है, अगर भूख ही नहीं लगती तो? विषय से संबंधित भूख नहीं लगे, देह से संबंधित भूख नहीं लगे, और कोई भूख नहीं लगे तो ? I प्रश्नकर्ता : तो इंसान वीतराग हो जाएगा । दादाश्री : वीतराग ही है न! यह तो भूख लगती है। कितने प्रकार की भूख लगती है उसे ? प्रश्नकर्ता : अनेक प्रकार की भूख है न! दादाश्री : नहीं, यों ही ! भूख नहीं लगे इसलिए आज घूमने नहीं जाना है, आज सोते रहना है । इसके बावजूद भी भूख लगे बगैर रहेगी क्या ? छोड़ेगी? एक दिन या दो दिन ?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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