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________________ [२.१] राग-द्वेष १०३ राग-द्वेष रहित परिणाम होते हैं उनके। और फिर उन (परिणामों) में वे खुद राग-द्वेष रहित रहते हैं। ये दोनों साथ में रहते हैं। प्रश्नकर्ता : द्वेष की वजह से भी रोग होता है या फिर राग की वजह से ही होता है? दादाश्री : राग-द्वेष दोनों ही से रोग। राग कहने का मतलब इतना ही है कि राग-द्वेष दोनों ही रहते हैं। जहाँ इनमें से एक है, वहाँ पर दूसरा रहता ही है। ज्यादातर रोग तो द्वेष की वजह से ही होते हैं। काफी कुछ द्वेष के, जो बहुत दुःख देते हैं न, वे द्वेष के रोग हैं और यदि बहुत दुःख नहीं दे तो, वह राग का रोग है। बहुत दुःख न दे, और जल्दी से दवाई मिल जाए तो वे सब राग के परिणाम हैं। अतः यह सब हिसाब है। जितना कूदना है उतना कूदो। आपको अपने दम पर कूदना है इसलिए अगर कोई गाली दे तो उसका निबेड़ा ला देना क्योंकि गाली देने की किसी की सत्ता नहीं है और अगर उसने गाली दी तो देअर इज़ समथिंग रोंग। उसका निबेड़ा ला देना। अगर वह कोई नुकसान कर दे तब भी निबेड़ा ले आना। आप किसी का नुकसान कर दो तो प्रतिक्रमण कर लेना। जितने तरीके हैं, वे आपको बता दिए। किसी के लिए कुछ उल्टा हो जाए तो प्रतिक्रमण करना। समाधान होते-होते यदि वह समाधान अपने मन में फिट हो जाता है तो उसके बाद जैसे ही हमारी वह दशा उत्पन्न हुई कि उसी समय यह समाधान हाज़िर हो जाएगा। यह ज्ञान हाज़िर हो जाएगा और वह फल देगा हमें, इसलिए रात-दिन सुनते रहना है। व्यापार बंद करके नहीं। व्यापार भी करते रहना और यह भी करते रहना। जो एक पक्ष में पड़ता है, वह दोनों ही पक्षों का बुरा करता है। अगर संसार पक्ष में पड़ा तो संसार भी बिगाड़ता है और इस निश्चय पक्ष में, आत्मा का भी बिगाड़ता है। धर्म में पड़ा हुआ संसार बिगाड़ता है और आत्मा को भी बिगाड़ता है। दोनों को बिगाड़ता है लेकिन जो दोनों में संतुलित रहे वह कुछ भी नहीं बिगाड़ता। हम यही बताना चाहते हैं। पागल मत बनना।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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