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________________ ९० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : हाँ, अक्रम से ऐसा हो जाता है। अतः अक्रम मोक्ष का पंथ है। दादाश्री : हाँ, यही मोक्ष का पंथ है। 'नहीं है मेरा' कहा, तभी से छूटने लगे जिसे बंधना हो उसके लिए तो है ही न मार्ग! जिसे बंधना हो उसके लिए बुद्धि का मार्ग है ही। जिसे मुक्त होना है उसके लिए हर प्रकार की छूट है। राग-द्वेष न किए जाएँ, उसी को मोक्षमार्ग कहते हैं। जो हो उसे देखता रहे। संसार तो है ही राग-द्वेष का निमित्त, खुद ही निमित्त है। निमित्त क्या करवाता है? प्रश्नकर्ता : राग-द्वेष ही करवाता है। दादाश्री : हाँ, तो फिर उस निमित्त में पड़ें ही नहीं न! यह 'मेरा नहीं है', ऐसा कहेंगे तो फिर मुक्त हो जाएंगे। यह 'मेरा नहीं है' कहा कि, वह खुद उससे अलग हो गया। हमने जो ज्ञान दिया है, उसमें यह दिखाया है कि 'क्या तेरा है' और 'क्या तेरा नहीं है'। यदि अभी वह ऐसा कह देगा तो मुक्त हो जाएगा। उस ज्ञान को चूक गए और एकाकार हुए कि चिपक पड़ेगा। प्रश्नकर्ता : अंदर से इस प्रकार अलग रखकर ही बैठने योग्य है। दादाश्री : अंदर और बाहर भी अलग रखना है। बाहर भी क्या लेना-देना है ? तुझसे क्या लेना-देना है। अगर एक घंटे गाली-गलौच हो जाए तो वह मारपीट करने लगेगा। उससे क्या लेना-देना? मन के विरोध के सामने... मन के विरोध करने पर भी अगर राग-द्वेष नहीं हों तो बहुत हो गया। अगर मन विरोध करे तो उसमें हर्ज नहीं है लेकिन राग-द्वेष नहीं होने चाहिए।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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