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[१] प्रज्ञा
रूप में है और प्रज्ञा भगवान का अंश है। जब काम पूर्ण हो जाएगा तब वापस उनमें समा जाएगी। भगवान और आत्मा एक ही हैं। आत्मा जब भौतिक में से छूटकर खुद के स्वरूप में ही रहता है, तब परमात्मा कहलाता है। निरंतर स्वरूप की रमणता, वही परमात्मा है और जब तक स्वरूप की रमणता भी है और यह रमणता भी है, तब तक अंतरात्मा। वही प्रज्ञा है।