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________________ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) किस वजह से ये सारे दोष हुए, वह यह सबकुछ जानता है। कुछ ही भाग नहीं जानता, बाकी सबकुछ जानता है। निन्यानवे तक जान सकता है, सौ तक नहीं जान सकता। बुद्धि का बहुत ज़्यादा विकास करे तो निन्यानवे तक जान सकता है लेकिन इसके बावजूद भी उस अहंकार से काम नहीं हो सकता। शुद्ध की ही आवश्यकता है। प्रश्नकर्ता : जो खुद को जानता है और खुद के आधार पर चलता है, वह कौन है? दादाश्री : वह अपनी प्रज्ञाशक्ति है। वह खुद अपने प्रकाश से ही जान रही है। चलना अर्थात् भाषा में जिसे चलना कहते हैं, वह नहीं। वह व्याप्त होती है! ज्ञायकता किसकी? प्रश्नकर्ता : आत्मा के स्वरूप में तो सभी चीजें झलकती हैं न? आत्मा का जो स्वरूप है दर्पण जैसा, दर्पण कभी भी देखने के लिए बाहर नहीं आता लेकिन यों दर्पण में सभी दृश्य झलकते (प्रतिबिंबित होते) हैं। दादाश्री : वह जो झलकता है, वह अलग चीज़ है लेकिन यह तो ज्ञायक है! तो अभी यह ज्ञायकता किसकी है? वह प्रज्ञाशक्ति की है। हाँ, क्योंकि अभी प्रज्ञाशक्ति कार्यकारी है। मूल आत्मा कार्यकारी नहीं होता है। जब तक यह संसार है, तब तक के लिए कार्यकारी शक्ति उत्पन्न हुई है। वह है प्रज्ञा। वह प्रज्ञा सभी कार्य पूरे करके, सबकुछ समेटकर मोक्ष में चली जाती है। जुगल जोड़ी, जागृति और प्रज्ञा की प्रश्नकर्ता : प्रज्ञाशक्ति और जागृति में कोई अंतर है? दादाश्री : प्रज्ञाशक्ति, आत्मा की प्योर शक्ति है और जागृति अर्थात् जिसमें प्योरिटी और इम्प्योरिटी दोनों ही होती हैं। जागृति प्योर होते-होते जब फुल हो जाती है, तब उसे केवलज्ञान कहा जाता है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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