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________________ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) दें तो उन्हें दुःख नहीं होता लेकिन अगर ज़रा सा भी मुँह बिगाड़कर दिया जाए तो उन पर असर हो जाता है। उसका कारण यह है कि उसमें अहंकार मिश्रित है। जबकि प्रेम में खाने वाले में भी अहंकार एकाकार नहीं है और देने वाले में भी अहंकार एकाकार नहीं है। अहंकार का अस्तित्व ही नहीं है वहाँ पर, इसलिए अच्छा लगता है। अतः यदि इसमें हम वेदक में एकाकार हो जाएँ तो बहुत दुःख होगा लेकिन यदि ज्ञायक रहा जाए तो दुःख बिल्कुल कम हो जाएगा। अगर 'जानने' में रहे तो ऐसा रहेगा जैसा कि प्रेम से देने पर महसूस होता है न! प्रज्ञा परिषह प्रश्नकर्ता : ज्ञान का अंश प्राप्त होने पर क्या वाणी का उदय होता है? दादाश्री : हाँ, होता है। वाणी का उदय जागृत होता है और उस उदय के जागृत होने के बाद यदि उसे बोलने नहीं दिया जाए तब प्रज्ञा परिषह उत्पन्न होता है। उसका समभाव से वेदन करना पड़ेगा। वाणी का उदय अपने आप ही होगा। उसके बाद फिर ज्ञानवाणी निकलेगी। वाणी ऐसी निकलेगी कि सामने वाले को समझा सकेंगे। लेकिन आपके समझाने पर भी यदि वह नहीं सुने तो आपको प्रज्ञा परिषह उत्पन्न होगा। प्रश्नकर्ता : क्या ऐसा भी हो सकता है कि इच्छा तो होगी बोलने की, किसी को समझाने की, लेकिन मैं वाणी द्वारा प्रकट न कर पाऊँ? दादाश्री : हाँ, हो सकता है। वाणी द्वारा प्रकट होना तो बहुत बड़ी चीज़ है। वह तो जब बहुत दिनों तक आप सुनते रहोगे, तब जाकर वह श्रुतज्ञान प्रगमित होगा और फिर वह मतिज्ञान में रूपांतरित होगा। फिर वह वाणी के रूप में निकलेगा। अत: बहुत दिनों तक सुनते रहना है फिर अंदर उसका दही जमता रहेगा। उसके बाद मक्खन निकलेगा, फिर उससे घी बनेगा। यदि विस्तार से समझें तो ऐसा है यह सब।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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