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________________ [१] प्रज्ञा २१ है, लेकिन मोक्ष का एक भी ताला नहीं खोल सकती। आत्मज्ञान मिले बिना प्रज्ञा उत्पन्न नहीं हो सकती या फिर अगर समकित हो जाए तब प्रज्ञा की शुरुआत होती है। उस समकित में प्रज्ञा की कैसी शुरुआत होती है? बीज के चंद्रमा जैसी शुरुआत होती है और यहाँ पर तो पूरी प्रज्ञा उत्पन्न हो जाती है। उसके बाद मोक्ष में ले जाने के लिए वह प्रज्ञा सचेत करती है। बार-बार सचेत कौन करता है? वह प्रज्ञा है। जबकि इन्हें क्या था? भरत राजा को सचेत करने वाले नौकर रखने पड़े थे। हर पंद्रह मिनट पर कहते थे कि 'भरत चेत, चेत', चार बार बोलते थे। देखो, आपको तो कोई सचेत करने वाला भी नहीं है, तब फिर अंदर से प्रज्ञा सचेत करती है। इस देह में टकराव करती रहती है, हमारे अंदर की वह अज्ञाशक्ति तो कब से ही हम से पेन्शन लेकर बैठ गई है। शोर नहीं और शराबा नहीं। उस तरफ का शोर ही नहीं है न, वह पकड़ ही नहीं है न! उस अज्ञाशक्ति ने ही संसार में भटकाया है। हम तो अबुध होकर बैठे हैं। कोई कहेगा, 'आपमें बहुत बुद्धि है ?' मैंने कहा, 'नहीं भाई! अबुध।' तब कहते हैं, 'अबुध कह रहे हैं ?' मैंने कहा, 'भाई, हाँ। वास्तव में अबुध हैं'। अगर बुद्धि होती, तभी फायदा-नुकसान दिखाती न! हम तो अबुध हैं ! बिल्कुल भी झंझट ही नहीं न! फायदे को नुकसान कहा न, नुकसान को फायदा कहा हमने, और फिर व्यवस्थित ऐसा है कि बुद्धि वाले के लिए भी नहीं बदलता और अबुध के लिए भी नहीं बदलता। वर्ना अगर हम 'व्यवस्थित है', ऐसा नहीं जानते तो हम भी बुद्धि को नहीं छोड़ते। अगर हमने व्यवस्थित को नहीं जाना होता न, तो हम अबुध नहीं हो पाते लेकिन हम जानते हैं कि व्यवस्थित है, तो फिर क्या परेशानी या झंझट है? अतः आपसे भी कहा, 'व्यवस्थित है'। अतः यदि बुद्धि का उपयोग नहीं करोगे तो अबुध हो जाओगे, तो चलेगा। मुझमें बुद्धि चली गई, उसके बाद मुझे यह सब समझ में आया था कि यह क्या घोटाला चल रहा है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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