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________________ संपादकीय आत्मार्थियों ने आत्मा से संबंधित अनेक बातें अनेक बार सुनी होंगी, पढ़ी भी होंगी लेकिन उसकी अनुभूति एक गुह्यतम चीज़ है ! आत्मानुभूति के साथ-साथ पूर्णाहुति की प्राप्ति के लिए अनेक चीजें जानने की ज़रूरत पड़ती है जैसे कि प्रकृति का साइन्स, पुद्गल को देखना और जानना, कर्मों का विज्ञान, प्रज्ञा का कार्य, राग-द्वेष, कषाय, आत्मा की निरालंब दशा, केवलज्ञान की दशा और आत्मा और ये स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के तमाम रहस्यों का हल, जो मूल दशा तक पहुँचने के लिए माइल स्टोन के रूप में काम आते हैं। जब तक यह संपूर्ण रूप से, सर्वांग रूप से दृष्टि में, अनुभव में न आ जाए तब तक आत्मविज्ञान की पूर्णाहुति प्राप्त नहीं की जा सकती। इन तमाम रहस्यों का स्पष्टीकरण संपूर्ण अनुभवी आत्मविज्ञानी के अलावा और कौन दे सकता है ? पूर्व काल में हुए ज्ञानी जो कहकर गए हैं, वह शब्दों में रह गया है, शास्त्रों में रह गया है और उन्होंने देशकाल के अधीन कहा था, जो काफी कुछ आज के देशकाल के अधीन समझ और अनुभव में फिट नहीं होता। इसलिए कुदरत के अद्भुत नज़राने के रूप में हम सब को इस काल में आत्मविज्ञानी अक्रमविज्ञानी परम पूज्य दादाश्री के अंदर पूर्ण रूप से प्रकट हुए ‘दादा भगवान' को स्पर्श करके निकली हुई पूर्ण अनुभव सिद्ध वाणी का उपहार मिला है। परम पूज्य दादाश्री ने कभी भी हाथ में कलम नहीं ली थी। मात्र उनके मुखारविंद से, उनके अनुसार टेपरिकॉर्डर में से मालिकी रहित स्याद्वाद वाणी, निमित्त मिलते ही देशना के रूप में निकलने लगती थी ! उन्हें ऑडियो केसेट में रिकॉर्ड करके, संकलन करके सुज्ञ साधकों तक पहुँचाने के प्रयास हुए हैं । उनमें से आप्तवाणियों का अनमोल ग्रंथ संग्रह प्रकाशित हुआ है। आप्तवाणी के बारह ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं और अभी तेरहवाँ ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है, जो पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में विभाजित किया गया है I 9
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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